चंदाबाई | Chandabai

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Chandabai  by परमानन्द जैन - Parmanand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ओ > बाईजीका यह कहना है कि अपने रीति रिवाज हतने पंतित हो गये हैं कि उनके अनुसार मूखे और निकम्मे पुरुष भी स्त्रियों पर प्राधान्य जमाये बैठे हैं । आपने कई कायं अपने हाथ में लिये और उनमें पूर्ण सफलता भी प्राप्त की । प्रथम तो यह कि जिससे स्त्रियाँ भली प्रकार लिखना पढ़ना सीखकर मनुष्य बनें, जिससे प्राचीन रुढ़ियाँ कुप्रथा सब नष्ट हों। जिससे विधवा बहिने शिक्षकोंका फीम करती हुई सुखसे तथा सम्मानसे जीवन यात्रा का निवह कर सकं श्नौर धमे तत्त्वोंकी समझकर उन पर आचरण करें। जिससे बहनें स्वाधीन चित्र, धार्मिक, आत्मनिर्भर सम्पन्न एवं उन्नतिशील हों। इन सब उद्देश्योंकी सफल बनानेके लिये आपने श्रान्त भावसे परिश्रम किया है । इस प्रकार पर हित ब्रतधारी निष्काम ऑत्म- त्यागी, पर दुःखकातर, पर चिन्तापरायण साध्वी बहन बहुत कैम ही दिखाई पड़ती हैं । लेखक महाशय ने इस पुस्तकें प्रातः स्मरणीया बाईजीके सम्बन्धे जो कुल संकलन कर जिया है वह यथाथ है । पर॒ यह मैं जानता हूँ कि उनके आदशश जीवनकी कई उल्लेखनीय নার लिखनेसे रह गईं हैं। पंडितजीने इस पुनीत प्रयासम जो परिश्रम किया है उसके लिये वे धन्यवादके पात्र हैं । ता० १-७-४३ कलकत्ता | | छोटेलाल जैन 4. १२. ^. 5.




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