भूखा अंकुर | Bhookha Ankur

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhookha Ankur by महेश चन्द्र - Mahesh Chandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महेश चन्द्र - Mahesh Chandra

Add Infomation AboutMahesh Chandra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सहकतो दाम श्रौर भूख ! कनॉट प्लेस ! नई दिल्‍ली का जगमगाता स्वरगं...ाधुनिकता के मादक रंग में सराबोर श्रामोद-प्रमोद का प्रमुख श्राकर्षण न्द्र अपनी सम्पूरणं आभा के साथ जगमगा रहा था । ऊपर प्रासमान पर भूरे बादलों में धूमिल-धुमिल टिमटिमाते तारे छिटके हुए थे । रह-रह कर बादलों में बिजली कौंध रही थी । वातावरण काफ़ी ठंड लिए हुए था.. ठंड जो गर्मी पर विजय पाने का जेसे डंका पीट रही हो । भ्ंघेरे में, चमेली के फूलों से भरी एक त्रिकोशाकार क्यारी के साथ पड़ी हरे रंग की बैच पर मैं पाक के एक भाग में बंठा हुमा था । बैस, ऐसे ही बठा था, कह लो--बेकार । पीछे पग-ध्वनि सुनाई पड़ी । घूम कर देखने को मन . हुआ, पर बैठा रहा । ठीक मेरे पीछे कोई श्राकर रुका । ग्राहिस्ता से दो बाजु बैंच पर टिके। तब साड़ी की सर- सराहट ! मैं कुछ घबराया । पलट कर देखना ही चाहता था कि फिर रुक गया । एक शभ्रजीब सी महक से मैं भ्रन्दर-बाहर सुवासित हो उठा । मैं कुछ कहूँ, श्रपनी महकती शाम श्रौर भूख !.............. ।. ४७.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now