मध्याह्न का क्षितिज | Madhyah Ka Kshitiz

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गिरधारीलाल व्यास - Girdharilal Vyas

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जानकीप्रसाद - Jankiprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदक बटोर लिए थे। अग्रेजी गवर्नर वायसराय सम्राटू-साम्राज्ञी और औपनिवेशिक यन्त्र का प्रत्येक पुर्जा सबसे अधिक खुश था तो इस बात से कि गगासिह छ सौ रियासतो के राज्यो मे आजादी की आवाज के गले को दबाकर मार डालने वाले शासको मे सिरमौर “नरेन्द्र शिरोमणि या महाराजाधिराज” है। पुरातत्व का रेकार्ड और स्वतन्त्रता सग्राम मे रियासती राजाओ की भूमिका के दस्तावेज इसके जीते-जागते प्रमाण है। गगासिह के दो मुखौटे थे--एक वह जो दूसरों के सामने उन्हे प्रतिभाशाली राष्ट्रभक्त दूरदर्शी विकासोन्मुख और प्रजापालक राजा के रूप मे दिखाता है, जबकि दूसरा मुखडा उन्हे यहाँ के जनसाधारण के सामने स्वतन्त्रता सेनानियो एव प्रबुद्ध लोगो के लिए मौत के देवता यमराज के रूप मे ही प्रस्तुत करता है। वास्तव मे गगासिह ने किसानो और देशभक्त स्वाधीनता सेनानियो को मारने-पीटने और जेलो मे उन्हे अमानवीय प्रताडनाएँ देने मे इतिहास के सारे रेकार्ड तोड दिए थे। यहाँ रघुवरदयाल गोयल मघाराम वैद्य, रामनारायण शर्मा चौधरी हनुमानसिह केदार शर्मा जैसे अनेक उदाहरण पेश किए जा सकते है। सन्‌ 1931 के रियासत व प्रिसली इण्डिया मे प्रकाशित लेखो मे बीकानेर राज्य मे फैले आतक और अत्याचारो का विवरण दिया गया है और यहाँ तक कि महाराजा गगासिह को बीकानेर का नीरो' कहा गया। जब चारो ओर से बीकानेर के दमन के बारे मे लेख लिखे गए और पत्र छापे गए तो जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाँधी ने भी इन दानवी कारनामो की कट आलोचना की। तो क्या जानकीप्रसाद बगरहट्टा और ऐसे ही शौकत उस्मानी ने गगासिह की दमन-नीति से आतकित होकर बीकानेर को अपनी गतिविधियों का केन्द्र नहीं बनाया अथवा सपाट शब्दो मे यह आशका प्रकट करे कि कह्टी वे कायर तो नहीं थे ? मोटे तौर पर तो यह कहा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति जो क्रान्तिकारी गतिविधियों या क्रान्तिकारियो या कम्युनिस्टो के सम्पर्क मे हो वह कायर तो हो ही नहीं सकता। अत प्रथमदृष्टया इस आशका को खारिज करते हुए कहा जा सकता है कि श्री जानकीप्रसाद बगरहट्टा निर्भीक साहसी और क्रान्तिकारी तेवर के व्यक्ति थे और वैसे ही शौकत उस्मानी भी। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि श्री बगरहट्टा अर्जुनलाल सेठी जैसे भूमिगत क्रान्तिकारी एम एन राय और श्रीपाद अमृत डॉगे जैसे ओजस्वी ब न्- उदय 15




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