तिलोयपण्णत्ती भाग - 3 | Tiloyapannati Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुरोवाक्
श्रोषतिवुषभा चाय विरचित 'तिलोयपण्णत्तो' करणानुयोग का श्रेष्ठतम ग्रन्थ
है । इसके आधार पर हरिवंशपुराण, जम्बुद्ीप प्र्नप्ति तथा त्रिलोकसार भादि ग्रन्थों
की रचना हुई है । श्री १०५ श्राधिका विशुद्धमती माताजी ने अत्यधिक परिश्रम कर
इस प्रन्थराज की हिन्दी टीका लिखी है । गणित के दुरूह स्थलों को सुगम रीति से
स्पष्ट किया है । इसके प्रथम भौर द्वितीय भाग क्रमश: सन् १६८४ और सन् १९८६
में प्रकाशित होकर विद्वानों के हाथ में पहुंच चुके हैं प्रसन्नता है कि विद्वज्जगत् में
इनका अच्छा आदर हुआ है । यह तीसरा और अन्तिम भाग है इसमें पाँच से नौ
तक महाधिकार हैं । प्रशस्ति में माताजी ने इस टीका के लिखने का उपक्रम किस
प्रकार हुआ, यह सब निर्दिष्ट किया है । माताजी की तपस्या ओर सतत जारी रहने
वाली श्रुताराघना का हो यह फल है कि उनका क्षयोपदयाम निरन्तर वृद्धि को प्राप्त
हो रहा है ।
त्रिलोकसार, सिद्धान्तसारवोपक और तिलोयपण्णतो के प्रथम, द्ितीय,
तृतीय भाग के अतिरिक्त अन्य लघुकाय पुस्तिकाएँ भी माताजी की लेखनी से लिखी
गई हैं । रुगण शरीर और आ्थिका की कठिन चर्या का निर्वाह रहते हुए भी इतनी
श्रुत सेवा इनसे हो रही है, यह जेन जगत के लिये गौरव की बात है । आशा है कि
माताजी के द्वारा इसी प्रकार को श्रुत सेवा होती रहेगी । मुझे इसी बात की प्रसन्नता
है कि प्रारम्भिक अवस्था में माताजी ने ( सुमित्राबाई के रूप में ) मेरे पास जो कुछ
अल्प अध्ययन किया था, उसे उन्होंने श्रपनी प्रतिभा से विशालतम रूप दिया है ।
बिनीत :
१४-३-१९८५८ परनालाल साहित्याचाय
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