तिलोयपण्णत्ती भाग - 3 | Tiloyapannati Bhag - 3

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Tiloyapannati Bhag - 3  by पन्नालाल जैन -Pannalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरोवाक्‌ श्रोषतिवुषभा चाय विरचित 'तिलोयपण्णत्तो' करणानुयोग का श्रेष्ठतम ग्रन्थ है । इसके आधार पर हरिवंशपुराण, जम्बुद्ीप प्र्नप्ति तथा त्रिलोकसार भादि ग्रन्थों की रचना हुई है । श्री १०५ श्राधिका विशुद्धमती माताजी ने अत्यधिक परिश्रम कर इस प्रन्थराज की हिन्दी टीका लिखी है । गणित के दुरूह स्थलों को सुगम रीति से स्पष्ट किया है । इसके प्रथम भौर द्वितीय भाग क्रमश: सन्‌ १६८४ और सन्‌ १९८६ में प्रकाशित होकर विद्वानों के हाथ में पहुंच चुके हैं प्रसन्नता है कि विद्वज्जगत्‌ में इनका अच्छा आदर हुआ है । यह तीसरा और अन्तिम भाग है इसमें पाँच से नौ तक महाधिकार हैं । प्रशस्ति में माताजी ने इस टीका के लिखने का उपक्रम किस प्रकार हुआ, यह सब निर्दिष्ट किया है । माताजी की तपस्या ओर सतत जारी रहने वाली श्रुताराघना का हो यह फल है कि उनका क्षयोपदयाम निरन्तर वृद्धि को प्राप्त हो रहा है । त्रिलोकसार, सिद्धान्तसारवोपक और तिलोयपण्णतो के प्रथम, द्ितीय, तृतीय भाग के अतिरिक्त अन्य लघुकाय पुस्तिकाएँ भी माताजी की लेखनी से लिखी गई हैं । रुगण शरीर और आ्थिका की कठिन चर्या का निर्वाह रहते हुए भी इतनी श्रुत सेवा इनसे हो रही है, यह जेन जगत के लिये गौरव की बात है । आशा है कि माताजी के द्वारा इसी प्रकार को श्रुत सेवा होती रहेगी । मुझे इसी बात की प्रसन्नता है कि प्रारम्भिक अवस्था में माताजी ने ( सुमित्राबाई के रूप में ) मेरे पास जो कुछ अल्प अध्ययन किया था, उसे उन्होंने श्रपनी प्रतिभा से विशालतम रूप दिया है । बिनीत : १४-३-१९८५८ परनालाल साहित्याचाय




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