शिवाजी | Shivaji

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Shivaji by Dr Ramkumar Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधिक नाटक को सफलता को संकेत करेंगी | पं की उपयोगिता पात्रों के मनोविज्ञान और व्यक्तित्व के सिनित करने सें है । इसीलिए पात्रों के ससंबाद होना पाएिग्ण्य है| यह संवाद कथावस्तु का विशिष्ट बाग दो संवाद आर मापा. फेवल मात्र मनोरंजन के लिए संवाद का विस्तार नहीं होना .चाहिये । वह प्रण स्वाभाविक बोर परिस्थिति के झ्रनुकूल इस नाटक में जडाँ मुसलमान पात्र झाए हैं अथवा उनसे बातचीत हुई है वहाँ पात्रों श्र परिस्थितियों की स्वाभाविकता के लिए संवादों में विदेशी शब्दों का मिश्रण है अन्यथा सारे नाटक में भारतीय परंपरा की व्यावदारिक भाषा का प्रयोग किया गया हैं। पात्रों के मनोभावों के श्रनुतार सी संवाद संक्षिप्त श्र विस्तृत हैं श्रौर उनकी भाषा में भी परिवतन किया गया है | यह बात कहानी आर उपन्यास के लिए उतनों सत्य नहीं है जितनी नाटकों के लिए है क्योंकि नाटक दृश्य काव्य के रूप में है । रंगमंव पर अधिक से अधिक स्वाभाविकता उपस्थित करने की आवश्यकता में पात्रों के मनोविज्ञान और उनके मुख की भाषा को यथावत्‌ ही रदना चाहिए | शिवाजी के संवादों में श्रोजस्विता इृढ़ता श्रौर शक्ति है । वे विशुद्ध भाषा म॑ झपना मनोविज्ञान स्पष्ट करते हैं किन्तु जब रौइरटरर से बात- चीत करते हैं तो अपने सनोभावों को समकाने के लिए वे गोहरबानू की भाषा के समीप पहेँचते गोहरबानू की भाषा मिश्रित है और उसमें विदेशी शब्दों की उचित मात्रा है जिससे उसके चरित्र को स्वाभाविकता अधिक स्पष्ट हो सके । काशीबाई सुन्दरी और युवती उसम प्रम की मादकता है इसलिए उसके संबादों में काव्य की छुटा इघर-उघर दिखलाई देती है। शेष पात्र विशुद्ध भाषा का श्राश्रय लेकर झपने जातीय मनोभावों को व्यक्त करते हैं । इस प्रकार नाटक में परिस्थिति और पात्रों के मनोविज्ञान के अनुकूल भाषा रखने का रु




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