सूक्ति त्रिवेणी | Sukti Triveni
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.98 MB
कुल पष्ठ :
814
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अधिक विस्तार न हो, इसलिए यहाँ सिफ सकेत कर रहा हूँ । शेप पाठक स्वय
तलना कर सकते है, भौर साथ ही यथा प्रसंग अन्यान्य स्यलो का मनुसघान
भी । तुलना की हप्टि से कुछ स्थल दिए जा रहे हे--
श्रप्पा मित्तममित्त च।
(जन घारा ११५1११४)
ग्रतता हि श्र्तनों नाथो ।
(वौद्ध घारा ५४1३२)
्रात्मव ह्मात्मन: वन्घुरात्मेव रिपुरात्मन: ।
(वैदिक घारा २७२४३)
जो सहस्सं सहस्स्साण सगामे दुज्जए जिए ।
(जन घारा २०८६०)
यो सहस्सं सहस्सेन संगामे मानुसे जिने ।
(वौद्ध घारा ५१1२१)
जरा जाव न घम्मं समाचरे ।
(जन घारा ६०1५३)
यावदेव भवेत् कल्पस्तावच्छ या समाचरेत् ।
(वदिक घारा २४५०1४६)
सुव्वए कम्मइ दिवं ।
(जन घारा १०४४३)
रोहान् रुरुहुमेंघ्यास. ।
(वैदिक घारा ११८।४४)
श्रन्नाणी कि काही ?
(जन धारा ८४1१२)
कथा विधात्यप्रचेता ।
(वेदिक घारा १०1३७)
यद्यपि मैं इस विचार का आाग्रह नहीं करता कि सुक्तित्रिवेणी का यह
सक नन अपने आप मे पूर्ण है । बहुत से ऐसे सुभापित, जो मेरी हष्टि मे अभी
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