श्रीमद राजचंद्र | Srimad Rajchandra

Srimad Rajchandra by पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri

Add Infomation About. Pt. Jagdish Chandra Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
, याओं बयान... 2. नस डक भर पक की. न का नकनण बनना गजकणा 7 पत्रांक पृष्ठ ३८१ आत्माका घर्म आत्मामें ३५४ ध्यान देने योग्य बात ३५५ ३८९ शानी पुरुषके प्रति अधूरा निदचय ३५६ ३८३ सश्ची ज्ञानदशासे दुःखकी निवृत्ति ३५६ ३८४ सबके प्रति समदष्टि ३५७ ३८५ महान पुरुषाका अभिप्राय ३५७ ३८६ बीजशान रे ३८७ सुघारसके संबंधमे रेपु८-९ ३८८ ईदवरेच्छा और यथायोग्य समझकर मौनभाव ३६० ३८९ “' आतमभावना मावतां ”' ३६० ३९० सुघारसका माहात्म्य २६१ ३९१ गाथाओंका शुद्ध अय ३६१ ३९२ स्वरूप सरल है ३६१ २७ वाँ घषे ३९३ दशालठिभद्र धनाभद्रका वेराग्य २३६९ ३९४ वाणीका संयम ३६२ २९५ चित्तका संकेपभाव ३६२ ३९६ कविताका आत्माथंके लिये आराधन ३६३ ३९७ उपाधिकी विदेषता ३६४ ३९८ संसारस्वरूपका वेदन ३६४ ३९९ सब धर्माका आधार शांति ३६४ ४०० कमेके भोगे बिना निदवत्ति नहीं ३६५ ४०१ सुदर्शन सेठ दे६५ ४०र ' शिक्षापत्र ३६५ ४०३ दो प्रकारका पुरुषार्थ ३६५ ४०४ तीथेकरका उपदेश ३६६ ४०५ व्यावहारिक प्रसगोकी चित्र-विचित्रता ३६७ ४०६ षटुपद ३६७-९ ,*'४०६ (२) छह पद ३६९ ४०७ दो प्रकारके कम ३७०-१ ४०८ संसारम अधिक व्यवसाय करना योग्य नहीं ३७३१ क४०८ ( रे,रे,४ ) यह त्यागी भी नहीं ३७ ४०९ णदस्थमें नीतिपूवेक चलना ३७२ ४१० उपदेशकी आकांक्षा शे७ ३ ४११ ' योगवासिष्ट ' ३७३ ४१२ व्यवसायकों घटाना ३७३ ४१३ वैराग्य उपदयमकी प्रधानता ३७४ उपदेशशान और सिद्धांतशान ३७४--५ ५४१३ (२) एक चैतन्यमें सब किस तरह घटता है ? ३७५ : विषय-सूची श्ष् पत्रांक पृष्ठ ४१४ साधुको पत्र समाचार आदि लिखनेका विधान ३७६-९ ४१५ साधघुको पत्र समाचार आदि लिखनेका विधान ३७९-८१ ४१६ पंचमकाल--असंयती पूजा ३८२ ४१७ नित्यनियम ३८२ ४१८ सिद्धांतबोध और उपदेशवोध ३८ ३-५ ४१९ संसारमै कठिनाईका अनुभव ३८६ *'४ १९ ( रे )आत्मपरिणामकी स्थिरता ३८६ ४5२० जीव और कर्मका संबंध ३८६-७ ससारी और लिद्ध जीवोंकी समानता ३८७ +४र२० (२) जैनदर्शन और वेदान्त ३८८ ४२१ वृत्तियोंके उपशमके लिये निवृत्तिकी आवधषयकता ३८८ ४२२ शानी पुरुषकी आशाका आराघन ३८९ अशानकी व्याख्या . ३८८९-९० कर९ ( रे) “निभा जिणाण॑ जिदमवाण” ३९०-१ ४र३ सूदम एकेन्द्रिय जीवोके व्याघातसंबंधी प्रश्न ३९१ ४२४ वेदांत और जिनसिद्धांतकी तुलना ३९२ ४२५ व्यवसायका प्रसंग ३९३ ४२६ सत्संग-सद्दाचन ३९ डे ४२३७ व्यवसाय उष्णताका कारण ३९३ +*४र८ सद्गुरुकी उपासना ३९४ ४२९ सत्संग भी प्रतिबद्ध बुद्धि ३९४ ४२३० वेराग्य उपशम आनेके पश्चात्‌ आत्माके रूपित्वय अरूपित्व आदिका विचार ३९४ ४३१ पत्रलेखन आदिकी अशक्यता ३९४ ४३र चित्तकी अश्थिरता ३९५ बनारसीदासको आत्मानुभव्र ३९५ प्रारूरघका वेदन ३९६ ४३३ सतपुरुषकी पहिचान ३९७ ४३४ पद आदिके बॉँचने विचारनेमेँ उपयोगका अमाव दे९८ ४5३५ बाह्य माहात्म्यकी अनिच्छा ३९५९ सिद्धाौंकी अवगाइना ३९९- ४०० +*४३६ वेश्य-वेष और निम्नन्यभावसंबंधी विचार ४०० +४ ३७ व्यवदारका विस्तार ४०१ +४ ३८४ समाघान ४० + ४३५ देहमें ममत्वका अभाव ४०रे +*४'४० तीन बातोंका संयम ४०२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now