तुलसी के चार दल | Tulasi Ke Char Dal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन-दृत्त ) गए झ्रोर वहीं इन्हें रामकथा सुनाई । चित्रकूट के निकट के 'सेगरें” को शूकरच्षेत्र मानना श्रम उत्पन्न करता हे । गोस्वामीजी काशी आरा गए श्रौर वहाँ से फिर चित्रकूट गए। उनका भ्रमण श्रोर अध्ययन साथ साथ चलता रहा । बाबा रघुवरदास घर बाबा वेणीमाधव में गोस्वामी जी के संबंध में सबसे भारी मतमेद उनके विवाह के संबंध में है । बाबा रघुवरदास उनके तीन विवाह लिखते हैं । 'संक्िप्त मूल गोसाई'चरित' में केवल एक लिखा है । साधारण प्रचलिव विवाह-संबंधी श्राौर उनकी खरी-संबंधों किंवदंती की पुष्टि 'संक्षिप्र मूल गासाइचरित' से होती है। गोस्त्रामीजी के पत्नी-प्रेम के संबंध में बहुत सी सरस भावनाएं लोगों में प्रचलित हैं। 'संक्िप्त मूल गासाई'चरित' में इस घटना पर बहुत से छंद लिखे गए हैं । कुछ लेखकों का कहना है कि गोस्वामीजी की पत्नी उनके मुँह फेरते ही स्वगधघाम सिधार गई । कुछ लोगों का कहना है कि पयटन-काल में पटनी से फिर उनकी भेंट हुई। जो हे, यह घटना गोस्वामी जी के जीवन-काल में है बड़े मददत््तर की । घर में पढ़ हुए प्रेम-पाठ को उन्होंने भगवान्‌ के चरणों में दुह- राया । उन्होंने ऐसा अवलंबन ढूँढ़ा जिसमें तिरस्कार की आशंका न थी। पटनी के प्रति गहरी स्नेह-बृत्ति ने गोस्वामी जी को पदले ही से आत्मनकार शरीर तीत्र अनुरक्ति का पाठ पढ़ा दिया था । केवल केंद्र-परिवतैन की आवश्यकता थी । एक विलीन-शोल, अस्पष्ट, प्रत्युत्तरहीन लद्य के स्थान में स्थायी ज्वलंत स्फूतिप्रद बिदु के मिल जाने भर की देर थी । उलड़ी हुई भक्ति-भावना दूने वेग के साथ संलगम् हो गई । व्यक्त श्रौर मृत्त होता हुभ्रा भी गोस्वामी जी के मानवी प्रेम का अवलंबन सिमकता और हटता हुम्रा दिखाई दिया झार अव्यक्त ओर अमूते होता हुभ्रा भी देवी अवलंबन थोड़े ही काल में उनकी गोद में खेलने लगा । मत्ये की संलग्नता ने




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