महाकवि हरिऔध का 'प्रिय प्रवास ' | Mahakavi Hariaudha Ka ' Priya Pravas'
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( हू )
“दरिन्नीथ' मोदकता हेरि मोदि मोहि जाति
जनता अमाधिकता मैं है मन रमता
महनीय-मडिमा विहार महती है छोति
ममतामपी की मातृमेदिनी को ममता ९
_ निजताजुरागिनी!--
बसन-बिदेसी की बसनता बिसरि सारी.
बिबस बने . हूँ देसी-बसन बिसाहै है
समता-बिचार . मैं असमता-बिपुल देखि
'पहि-प्रीति-ममता कों परखि उमाड़े है
“हुरिश्रोथ' परकीयता को परकीय जानि
सकल स्वकीयता. को सतत सराहै है
मारत की पूजनीयता को पूजरीय मानि
भारतीय - बाला भारतीयता . निबाहै है ।
लोकसे बिका :
सेदा सेवटीय की करति सेविका समान.
सेदन आर सेवरीयठा ते संँवरति : है
सघदा को सोधि सोधि सोघति सुवारति है
दिचवा को बोधि बोधि बुधता बरति, है
दुरिश्नौध' 'घोवति कलंकिदी-ऋलंक-अंक
बंक-मति-बंकता.. श्रसंकता दरति है
नंदित होते करि श्रादर अिंदित को
निंदित की निंदनीयतठा को निदरति है ।
चम्र।मका «
सजनीय-प्रमु के मजन दिये भाव साथ...
मजनीय-जन के भजन काज तरसे
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