महाकवि हरिऔध का 'प्रिय प्रवास ' | Mahakavi Hariaudha Ka ' Priya Pravas'

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Mahakavi Hariaudha Ka ' Priya Pravas' by डॉ० धर्मेन्द्र ब्रम्हचारी शास्त्री - Dr. Dharmendra Brahmchari Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हू ) “दरिन्नीथ' मोदकता हेरि मोदि मोहि जाति जनता अमाधिकता मैं है मन रमता महनीय-मडिमा विहार महती है छोति ममतामपी की मातृमेदिनी को ममता ९ _ निजताजुरागिनी!-- बसन-बिदेसी की बसनता बिसरि सारी. बिबस बने . हूँ देसी-बसन बिसाहै है समता-बिचार . मैं असमता-बिपुल देखि 'पहि-प्रीति-ममता कों परखि उमाड़े है “हुरिश्रोथ' परकीयता को परकीय जानि सकल स्वकीयता. को सतत सराहै है मारत की पूजनीयता को पूजरीय मानि भारतीय - बाला भारतीयता . निबाहै है । लोकसे बिका : सेदा सेवटीय की करति सेविका समान. सेदन आर सेवरीयठा ते संँवरति : है सघदा को सोधि सोधि सोघति सुवारति है दिचवा को बोधि बोधि बुधता बरति, है दुरिश्नौध' 'घोवति कलंकिदी-ऋलंक-अंक बंक-मति-बंकता.. श्रसंकता दरति है नंदित होते करि श्रादर अिंदित को निंदित की निंदनीयतठा को निदरति है । चम्र।मका « सजनीय-प्रमु के मजन दिये भाव साथ... मजनीय-जन के भजन काज तरसे




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