जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Jambudveep Pragyapti Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
681
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चौथे वक्षस्कार में मुख्य रूप में महाविदेह क्षेत्र का बहुत ही सुन्दर वर्णन है। पाँचवें वक्षस्कार में
भगवान ऋषभदेव की जन्म महिमा व इन्द्रों द्वारा जन्माभिषेक का रोचक वर्णन है। छठे वक्षस्कार में भी
जम्बूद्वीप के पूर्व वर्णित विषयों की तालिका मात्र है।
सातवाँ वक्षस्कार ज्योतिष चक्र की जानकारी देता है। सूर्य, चन्द्र, ग्रहों, नक्षत्रों, तारों की गति,
भ्रमण उनके भ्रमण से दिन-रात, मास, संवत्सर आदि का वर्णन है। अंतरिक्ष सम्बन्धी इस वर्णन में
आधुनिक विज्ञान सम्मत मान्यताएँ भले ही मतभेद रखती हों, परन्तु प्राचीन भारत के ज्योतिष ग्रन्थ,
वेद, उपनिषद् से लेकर ज्योतिष संहिताओं तक के वर्णन इन मान्यताओं की पुष्टि करते हैं और आज
प्रत्यक्ष व्यवहार में भी सूर्य, चन्द्र सम्बन्धी यह वर्णन बहुत कुछ अपना प्रभाव जता रहा है, जिसके हम
सब साक्षी हैं।
इन भौगोलिक वर्णनों को समझाने के लिए हमने यत्र-तत्र प्राचीन ग्रन्थों में प्रकाशित व शताब्ियों
पूर्व हाथ से बने चित्रों का सहारा लिया है। प्राचीन ताड़पत्रीय चित्रों की रेखाकृतियों में रंग आदि की
संयोजना कर कम्प्यूटर पर उन्हें नया रंग-रूप सज्जा देकर यहाँ प्रस्तुत किया है। जिससे क्षेत्र, पर्वत
आदि का वर्णन तथा सूर्य-चन्द्र आदि की गति का चक्र तथा नक्षत्रों की आकृतियों आदि का चित्रण
सम्मिलित है। इन चित्रों से यह नीरस व जटिल विषय समझने में रुचिकर व सुबोध बन गया है।
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इसके साथ ही भरत चक्रवर्ती के जीवन से सम्बन्धित अनेक नये चित्र और भगवान क्षभदेव के गा
जन्म महोत्सव पर दिशा कुमारियों द्वारा महोत्सव का चित्रण भी मनमोहक व ज्ञानवर्धक बना है। फ
अंग्रेजी अनुवाद द्
जम्बूद्दीप प्रज्ञप्ति जैसे शास्त्र का अंग्रेजी अनुवाद करना भी बहुत श्रमसाध्य कार्य रहा। इन शब्दों के 7
अंग्रेजी पारिभाषिक शब्द मिलना भी मुश्किल काम है। फिर भी अंग्रेजी तत्वार्धसूत्र व अन्य कुछ «कु,
प्रकाशित साहित्य से सहयोग मिला है। सुश्रावक श्री राजकुमार जी जैन ने बहुत ही अधिक श्रम करके
सूझ-बूझ पूर्वक इस कठिन कार्य को सम्पन्न किया है। उनकी यह निस्वार्ध भाव से की गई श्रुत-सेवा
एवं बौद्धिक परिश्रम पुनः पुनः अभिनन्दनीय है।
शुद्ध मूल पाठ तथा हिन्दी भावानुवाद के लिए हमने युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. द्वारा
सम्पाददित, डॉ. छगनलाल जी शास्त्री द्वारा अनुदित जम्बूद्दीप प्रज्ञप्ति का उपयोग किया है। अनेक स्थानों
पर शान्तिचन्द्र वाचक विरचित वृत्ति (संस्कृत टीका) तथा उपाध्याय मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल'
द्वारा सम्पादित गणितानुयोग का सहारा भी लिया है। कुछ स्थानों पर स्पष्टीकरण हेतु विशेष टिप्पण व
तालिकाएँ भी बनाकर दी गई हैं। इस प्रकार सुन्दर सार्थक सम्पादन में हमारे सहयोगी विद्वान श्रीचन्द
जी सुराना 'सरस' का परिश्रम अपने आप में महत्त्वपूर्ण है।?
१. आगम प्रकाशन समिति ब्यावर द्वारा प्रकाशित प्रति में *जाध' पूरक विशेष पाठों को अन्य आगमों से संकलित कर पूर्ण
व विस्तृत किया गया है, जबकि आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित तथा शान्तिचन्द्र वाचक विरचित बृत्ति (आगम श्रुत
प्रकाशन अहमदाबाद) त्तथा धम्मकहाणुओग, गणितानुयोग (संपादक : उपाध्याय मुनि श्री कनैयालाल जी म. 'कमल')
में ये जाव पूरक पाठ नहीं दिये हैं। हमने वृत्ति सहित प्राचीन प्रति के अनुसार पूरक पाठ नहीं लिए हैं।
-सम्पादक
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