राम - दुलारी | Ram-dulari

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Ram-dulari by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( शुई स््री-पेसा तो होने ही ठगा है । मद--तो फिर यह भी करने गो कि जिस प्रकार मंद एक स्त्री के जीतेजी दूसरी तीसरी ब्याह लाता है इसी प्रकार स्त्रियां मी पक साथ कई कई पति कर लिया करें । स्त्री-नहीं, मदों की तरह स्त्रियां कुशीली नहीं हैं जो पेसा करने लगें, किन्तु वह तो यह ही कहती दें कि जिस प्रकार स्त्री पक पत्ति के जीते जी दूसरा पति नहीं कर सकती है इस प्रकार मर्द भी एक स्त्री के जीतेजी दूसरी सत्री न कर सकें । मदे--क्या कहने हैं तुम्हारे, आज तो तुमने बड़े २ पंडितों को भी मात देदी । स्त्री-यह. मज़ाक की बातें तो होली, अब तुम मेरी बात पर ध्यान दो और जिस तरह भी होसके दुलारी की सगाई चहां मत होनेदो ! दृ- अच्छा तो असली बात बता, तुझे क्यों इतनी छाग हो रही हे इस बात की । स्त्री-हमारी कमला बहुत खयाल कर रही हे इस बात का; चहद तो यहां तक कहती दे कि जो वह ब्याद होगया तो न तो में दुढारी को अपने यहां बुलाऊं और न उसके यहां जाऊं । _ मदे-तो कुछ सबब भी इस चात का 1 स्त्री-सबब क्या होता, नाश गया डोरे डाठता पिरे है भले घरों की बहू बेटियों पर, इनके यहां भी तो अपनी कुटनियां सेज्ी थीं, पर इसने तो घकके देकर निकालदी ।




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