रस - बंधों | Ras - Bandho

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Ras - Bandho  by प्रेमप्रभा - Premaprabha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है) प्रकाशक की भोर से नौलाख जाप की आराधना कर रहे हैं । आप चार सुपुत्र और एक सुपूत्री के संस्कारी पिता हैं । आपकी संतानों में आधुनिक शिक्षा के साथ सदाचार व आस्तिकता पर्याप्त झलकती है । आपकी बडी बहन (दाल महानन्दाश्रीजीने) प्रवज्या अंगीकार की है। एवं सांसारिक नाते से उनके दो पुत्र ब चार पुत्रियों ने भी वात्सल्य मूर्ति माता का अनुकरण किया है । ज्येष्ठ पत्र पू० मुनिश्री धर्मानन्दविजयजी म०, आप इस कमसाहित्य के पदाथ संग्रहकार हैं । लघुपुत्र पू० मुनिश्री जपद्योस्रविजयजों म० इस ग्रन्थकी टीका आपने ही लिखी है । पाश्चात्यों का प्रबलसहवास रहने पर भी भारतभूमि की आध्यात्मिकता उयों की त्यों ओ- झल में सदा की भांति सजीव रही हैं । इसी के फलस्वरूप कर्मसाहित्य जैसे द्रव्यानुयोग के साहित्य का सर्जन व प्रकाशन आजभी सुख्भता से हो रहा है। दाता का द्रव्य व हमारा परिश्रम भी तब्र ही सफल हुआ है जब कि निस्पृह शिरोमणि सिद्धान्तमहोदधि कर्मसाहित्यनिष्णात परमपूज्य आचायंदेव श्रीमदू विज यप्रेम सरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने प्रशिष्यों द्वारा सर्जित साहित्य को मुद्रित करवाने हेतु हमें सुपुद किया । अतः करोड़ों वंदनपूर्वक पूज्यश्री का एहसान प्रमट करते हैं । इम साहित्य प्रासाद निर्माण के स्तम्भभृत, ग्रन्थ में गुम्फित पदार्थों (तो) के संग्रह कार महात्मा, मूलग्रन्थ की प्राकृत गायाओं के रचयिता व विज्ञाल और सुबोध टीका के लेखक महात्मा को भक्तया नतमस्तक बंदन करते हैं व करोड़ों धन्यवाद के साथ एहसान मानते है । यतः इस साहित्यरथ के दपभग्थानीय आपही हैं । परमतपस्वी न्यायविशारद पू० पं० भानुविजयजी गणिवर के शिष्य पूज्यमुनि श्री जितेन्द्रविज्ञय- जीने अपना अमूल्य समय देकर प्रस्तावना लिखी है । आपका उपकार किन दाव्दों में व्यक्त करें ! इस ग्रन्थ का मुद्रण हमारी संस्था के निजी ज्ञानोदय प्रेस पिन्डवाड़ा (राज०) में हुआ है प्रेम के मेनेजर ब्यावर निवासी श्रीयुव फतहचन्दजी जेन (दालावाले) व अन्य कमंचारी भी इस अवसर पर याद आए बिना नहीं रहते, जिनकी आत्मीयता से संस्था प्रकाशन कार्य सुचारु रूप से कर रही है । लक्ष्मीनन्दर्नों से तो कुछ भी नहीं कहना है क्योंकि उन्हें तो मातस्थानीय लक्ष्मी माँ के अधीन दी जीना है अतः पूजीपतियों से प्रार्थना है कि इस ज्ञान यज्ञ रुप हमारे साहित्य प्रकाशन के काये में तन मन धन का सदा की भांति सहयोग प्रदान करते रहें । भववीय () पिष्डबाढ़ा 1... शा० समरथमल रायचन्दजी (मंत्री) स्टे० सिरोद्दीरोड (राजस्थान). ;. हा? शान्तिलाल सोमचंद (माणाभाई) चोकसी (मन्त्री) हा) १३४/३७ जीहरी बाजार । शा० लालचन्द छगनलालजी (मन्त्री) बम्बई-२ |. भारतीय प्राच्य तत्त्व प्रकादान समिति




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