छायावादी कवियों का सांस्कृतिक दृष्टिकोण | Chhayavadi Kaviyon Ka Sanskritik Drishtikon

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Chhayavadi Kaviyon Ka Sanskritik Drishtikon by जगदीश गुप्त - Jagdish Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३1 १६०० छ० तक यह स्पष्ट डॉ गया कि क्रेज भारत का आधी थिक विकास करने की इच्छा' नहीं रखते । यहीं कारण हैं हि उमभीगपत्तियाँ ने उनका विरोध : करने के लिए ही कांग्रैस का साथ देना झुह किया | जाॉप्रिक्ा के बौबाए सुर (. कि नर . ) तार तुकी दारा यूनानियाँ की पराजय तथा पूर्वी देशों में इंसाइ्याँ की कत्या' से भाएतीयाँ के हीन मन मैं थी एक राष्ट्रीयता की लग फैल गह । फलस्वरूप लॉग शुले जाम रजनी लि मैं शरीक हाँने लगे | देश की संघिप्त शौच गिक व्यवस्था पर डॉष्टिपात करते हुए छायावादी विचार धारा की सािस्पिक पृष्ठभूमि के रूप मैं यदि भाशतैन्दु दिवेदीयुग की पिस्थितियाँ की विधिनन विदेशी शासकों आए तत्कालीन सस्थित्तियाँ की फिया-प्रसिफिया' के सम्पर्क सुन मैं याँदि देवैं ता श्रधिक युक्ति- संगत होगा । छस दाष्टि से लारड र्गिन दितीय ( श£४०६६) के शासन काल में अकाल भार महामारी महत्वपू्रं बुध खब घटना थी । जी शासन की श्रव्यवस्था' की धौतक हैं । लाई कर्जन ( रू६८६ से १६०५ ) के शासनकाल मैं यथा रैल, रघाप, कृषि आदि के विकास की व्यवस्था हुई पर उसकी लिए कूश नीति मे भारतीय के प्रति दुव्यवाए, जातीयता, पकषपात आदि की भावना मैं यहाँ की जनता के मन मैं उसके प्रति घृषाा भर दी थी । यहीं कारण था कि मारतीय राजनी लिक प्रतिक्िया में बादधि हुई, क्याँकि इस बीच केजम नै बंगाल का दा भागा मैं विभाजन ( १६०४) कर दिया था । इसकी घर प्रतिक्रिया मैं वैशव्यापी आान्दीलन हुआ । १६०४ मैं जमारस कांग्रेस के समाधित गापालकणाग गौलले ने सरकार की कटू निंदा की । साथ ही इसी काग्रैस मैं बंगनभग के विरोध मैं विदेशी वस्तुओआँ के बहििणष्काएं का थी प्रस्ताव पास इुआ | लगभग १६०६४ ह० में भारतीय रजनी तिक गतिविधि में सहानु अन्तर जा गया | कागिस श्पनी नरम नीति का त्याग करने लगी । लाई कर्जन के त्यागपत्र देकर चले जाने के बाद लगभग १६०६५ मैं ला मिनट वायसराय बन कर आये । पर बंगमंग आान्वीलन की रोकने में इस्हें थी सफलता नहीं पिली । देश की जन चेतना मैं प्रगति हो एदी थी । दादा भाई नीरीजी की अध्यदत्त में कलकत्ता




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