धर्म एक कसौटी एक रेखा | Dharm Ek Kashauti Ek Rekha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)षढ धर्म एक कसौटी, एक रेखा
भी होता है । किन्तु एक जगह वह वास्तविक होता हैं तो पाँच जगह
काल्पनिक भी चल जाता है । खोटा सिवका सच्चे सिक्के के आधार पर ही
चलता है ।
हिंसा और भय से बचने के लिए ही मनुष्य ने समाज का निर्माण
किया था। जीवन वी सुरक्षा का आश्वासन पाने के लिए ही मनुष्य ने
ससाज का निर्माण किया था । क्या आज समाज उसे भाश्वासन दे रहा
है ? क्या समाज में उसे आश्वासन देने की क्षमता है ? मैं उस सामाजिक
व्यवस्था को च्रूटिपूर्ण मानता हूँ जो मनुष्य को सुरक्षा का आश्वासन नहीं
देती । जीवन की हर समस्या और दुवेलता के लिए आश्वासन दे सके ऐसी
समाज-व्यवस्था में ही अहिसा के वीज अकुरित दो सकते है । भाज समुचे
ससार मे विद्यार्थी एक समस्या के रूप मे सामने आ रहा है। क्या नई
पीढी पुरानी पीढी से सघपं करने के लिए ही उत्पन्न हुई है ? क्या
विद्यार्थी के उफनते हुए आक्ोश के पीछे पुरानी पीढ़ी की हिंसा का ताप
नही है ? हर नई पीढी को पुरानी पीढी से हिंसा के विचार विरासत में
मिलते आ रहे हैं । पुरानी पीढी का अपना अभिनिवेश ही नई पीटी को
विद्रोह के लिए विवश कर रहा है। देश और काल के साथ वनने चाले
विचार और जीवनक्रम जव शाश्वत का रूप ले लेते हैं तव नई पीढी के
मन में पुरानी पीटी के प्रति अविश्वास पैदा हो जाता हूँ ।
विचार एक प्रवाह है, व्यवस्था एक परम्परा है 1 प्रवाह अपनी गति
से आगे बढता रहे और परम्परा उत्तरोत्तर गतिशील रहे तब भय पैदा
नही होता । उसकी गति अवरुद्ध हो जाने पर वे भय के हेतु वन जाते है ।
भारतीय दर्शनों में मिव्या-दृप्टिकोण की लम्बी चर्चा मिलती है ।
अशाश्वत्त को शाश्वत और शाश्वत को अशाश्वत मानना मिथ्या-दृप्टिकोण
है। जो अपना नहीं है, उसे अपना और जो अपना है उसे अपना नह्टी
मानना मिथ्या-दृषप्टिकोण है । इसमें भय उत्पन्न होता है 1 सत्य की
परिधि में पहुंचे विना कोई भी आदमी अभय नही हो सकता और अभय
हुए विना कोई भी आदमी अद्धसिक नहीं हो सकता 1
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