गुरुकुल - पत्रिका | Gurukul Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यज्ञमय और योगमय जीवन का सन्देश वेदमाता इस प्रकार देती है-
मा प्रगाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिन: |
मान्त: स्थुर्नों अरातयः: ।। ऋणगृ० १०1५७॥१
हे ऐश्वर्य सम्पन्न प्रभो ! शान्ति तथा ऐश्वर्य के अभिलाषी हम सुपथ से कभी भी
विचलित न हों । हम यज्ञमय जीवन से कभी प्थक् न हों। अदान-भावना तथा काम,
क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि शत्रु हमारे भीतर न रहें।
वेद कहता है-
उत्क्रामात: पुरुष मावपत्था मृत्यो: षड्वीशमवमुच्यमान: । अथर्व० ८ ।१॥४
हे पुरुष ! उठ खड़ा हो, आगे बढ़, उन्नति कर, नीचे मत गिर, अवनति की ओर मत
जा। यदि मृत्यु भी तेरे मार्ग में आकर खड़ी हो जाए तो भी परवाह मत कर, मौत की
बेड़ियों को काटता हुआ आगे बढ़।
इस प्रकार वेद प्रतिपादित जीवन दर्शन, मानव मात्र को कल्याण और परमानन्द
का सुमार्ग प्रतिपादित कर विश्व में सुख, शान्ति और विश्व बन्धुत्व की गंगा प्रवाहित
करता है।
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