दुर्गादास | Durgadas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चरथ 1 | पहला अक 1 रद
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तृहदीं आता । उन्होंने जसवन्तसिंहकों कत्ठ करा डाला, इसलिए कि
उनसे वाद्याह खौफ खाते थे ! लेकिन अब राजा साहवकी रानी और
बच्चेपर यह नागजगी--यह सितम--किस छिए हैं £---चर्दूँ घरमें
बीबी और वरचोंसे मिठे दूँ । मुमकिन हैं कि लड़ाईसे न लोदेँ ।
( प्रस्थान है.
चौथा दृदय ।
--प्ग्ड:--
स्थान--मेवारके राना राजसिंहका महल ।
खसय--तीसरा पहर ।
[ राजकुमार जयसिंहकी अभी व्याहकर लाई हुई दूसरी ख्री कमलादवी
अकेली खड़ी हुई है । ]
कमला ०--( आप-ही-आप ) केसा तुमको पेंचमें डाला है स्वामी !
अब उसीमें भरमते रहो । बड़ी रानी तो जैसे सन्नाठेमें आगई हैं !
एक दूसरे: आदमीने आकर इतने थोड़े दिनोंमें उनके मुँहका कौर
छीन छिया ! कैसे दुखकी बात है !---हाः हा; हा:--मन्त्र जानती हूँ
बड़ी रानी, मन्त्र जानती हूँ !--खूब हुआ ! ऐसे स्वामी ऐसे स्वामी,”
राना राजसिंहके पुत्र,--ऐसे स्वामीको अकेले छिपकर अपने सुखकी
सामग्री बनाना चाहती थीं बड़ी रानी ! लाज भी नहीं आई !---
राजाके यही पुत्र तो मेवारके राना होंगे । और तुमने अकेले रानी
होना विचुरा था ! पर यह हो नहीं सकता बड़ी रानी ! कैसे चील्हकी
तरह झपट्टा मारकर छीन छिया है ।--क्यों ! रानी होओगी ? होंओ !
और भीमसिंह ! तुम राजा होओगे ? हो चुके ! रानाने अपने हाथ-
से मेरे स्वाभीके हाथमें ' राखी,” बाँघ दी है, जानते हो १? जेठजी !
इसकी कुछ खबर है ? इसके सिवा मेरे स्वामी ही तो रानाकों
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