दुर्गादास | Durgadas

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Durgadas by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चरथ 1 | पहला अक 1 रद अलग, फनी कल ७ अचियद्री ि अीविदरीकि हि. “वरीिि िदीफ, सफर कीवजीजनननी नी भी जज पप ही #. लीकजीय हक की... लीध अफिद नैध अर अं भी िकरीकि अप्लाच्च्न्लीपिलभचियरी कान व पद अंक अीा कि अि # कक अफ्रीकी अंक, ७ बीच तृहदीं आता । उन्होंने जसवन्तसिंहकों कत्ठ करा डाला, इसलिए कि उनसे वाद्याह खौफ खाते थे ! लेकिन अब राजा साहवकी रानी और बच्चेपर यह नागजगी--यह सितम--किस छिए हैं £---चर्दूँ घरमें बीबी और वरचोंसे मिठे दूँ । मुमकिन हैं कि लड़ाईसे न लोदेँ । ( प्रस्थान है. चौथा दृदय । --प्ग्ड:-- स्थान--मेवारके राना राजसिंहका महल । खसय--तीसरा पहर । [ राजकुमार जयसिंहकी अभी व्याहकर लाई हुई दूसरी ख्री कमलादवी अकेली खड़ी हुई है । ] कमला ०--( आप-ही-आप ) केसा तुमको पेंचमें डाला है स्वामी ! अब उसीमें भरमते रहो । बड़ी रानी तो जैसे सन्नाठेमें आगई हैं ! एक दूसरे: आदमीने आकर इतने थोड़े दिनोंमें उनके मुँहका कौर छीन छिया ! कैसे दुखकी बात है !---हाः हा; हा:--मन्त्र जानती हूँ बड़ी रानी, मन्त्र जानती हूँ !--खूब हुआ ! ऐसे स्वामी ऐसे स्वामी,” राना राजसिंहके पुत्र,--ऐसे स्वामीको अकेले छिपकर अपने सुखकी सामग्री बनाना चाहती थीं बड़ी रानी ! लाज भी नहीं आई !--- राजाके यही पुत्र तो मेवारके राना होंगे । और तुमने अकेले रानी होना विचुरा था ! पर यह हो नहीं सकता बड़ी रानी ! कैसे चील्हकी तरह झपट्टा मारकर छीन छिया है ।--क्यों ! रानी होओगी ? होंओ ! और भीमसिंह ! तुम राजा होओगे ? हो चुके ! रानाने अपने हाथ- से मेरे स्वाभीके हाथमें ' राखी,” बाँघ दी है, जानते हो १? जेठजी ! इसकी कुछ खबर है ? इसके सिवा मेरे स्वामी ही तो रानाकों




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