कुछ स्मरणीय मुकदमे | Kuchh Smaraniya Mukadame

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Kuchh Smaraniya Mukadame by कैलासनाथ काटजू - Kailasnath Katajoo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ कुछ स्मरणीय मुकदमे इनके दाब्दोमिं जो भाव है, वद्दी इनके दिलमें भी है ? उनके चेहरेकी ओर देखनेसे तो ऐसा नहीं जान पढ़ता ।' मैंने जबाब दिया--'महदोदय, श्री स्पाटको उनके सहयोगी बहुत ही धर्मात्मा एवं उच्च नैतिक सिद्धान्तोका अनुयायी ईस्वर-भक्त सजन समझते हैं ।” जस्टिस यंगको स्पष्ट ही इस बात पर बड़ा आर्य होता था कि स्प्राट जैसे सुख्यात व्यक्तिके बाह्य रूप तथा आन्तरिक विद्वासोंमें कितना अन्तर है | में समझता हूँ कि छुल मिलाकर कागजों तथा किताबके सौंवे हिस्सेतककी ओर भी कोई निर्देश नहीं किया गया और न किसीने दोरा जजके फैसलेका ही अधिक उल्लेख किया । संकेत- छिपिमें लिखे गये सैकड़ों प्र्ठोंकी चर्चा बातकी बातमें खत्म हो गयी जब मैंने न्यायाघीशोंसे अनुरोध किया कि वे स्वयं इन कागज-पत्रोंकी पढ़कर जरा देख लें । जैसा कि मैंने कहा था, इस बातका कोई महत्त्व नहीं है कि ये पत्र तथा अन्य कागज सीधी-सादी अंग्रेजी भाषामें लिखे गये या बहुत ही अचम्मेमें डालनेवाली सांकेतिक भाषामें । प्र यह था कि उनमें लिखा कया था आर जैसा कि मैंने उन्हें बतलाया लिखित सामग्रीका रूप थोड़ेमें मात्र यही था--'तिम आते हो, में जाता हूँ ।' यह दलील अप्रतिरोध्य थी, अतः इसने मुकदमेकी इस मॉगका अन्त कर दिया । मेंने अपनी बात बहुत थोड़ेमें ही कही, मेरे सहयोशियोंने भी यही किया. और इस प्रकार अपीकछ करने- वालोंके पक्षमं की गयी कुल बहस पॉच दिनोंक्रे भीतर ही समाप्त हो गयी और पॉँचवें दिन याने झुक्रवारको ( सरकारी वकील ) श्री केम्पसे इसका जवाब देनेको कहा गया । सभीने देखा कि इससे उन्हें इतना अधिक आश्चर्य हुआ कि वे उसे छिपा न सके । स्वप्रमें भी उन्होंने मामलेके इतनी शीघ्रतासे समाप्त हो जानेकी बात नहीं सोची थी और वास्तवमें छुछ अधिक कहसेके लिए रह भी नहीं गया था । सारी चीज, ठीकसे विश्ठेषण करनेके बाद, बिलकुल आसाभ ओर स्पष्ट हो जाती थी । उन्होंने अपना मामला सोमवार या मंगलवारकों खत्म कर दिया । और कोई जवाब देमेकी आवश्यकता न थी । विद्वान न्यायाधीशोंने घोषित कर दिया कि वे अपना निर्णय दूसरे दिन सुनायेंगे । इस 'दूसरे दिन” श्री केम्प अदालतमें उपस्थित न थे । मुझे मादूम हुआ था. कि उनसे अदाल्तमें हाजिर रहनेको कहा गया था किन्तु उन्होंने श्रुद्ध होकर कहा था कि में न इल्याटाबाद उच्च न्यायाल्यको समझ सका और न उसके न्यायाधीशों या चकीलोंक्े रंग-ढंग को, इसलिए; फैसला सुननेके लिए; अदालतमें उपस्थित रहना बेमतठ्ब होगा । इस प्रकार उन्हें केवल ८ था ९ दिनोंकी ही फीस मिली और तब वे चले गये । मुख्य न्यायाधिपति श्री सुल्मान एक महान न्यायाधीश थे और उनमें यह आश्चर्यजनक क्षमता थी कि खुछी अदाल्तमें लगातार कई घण्टेतक जब्ानी फैसला सुनाया करते थे । इस मुकदमेका फौसला सुनानेमें उन्हें पूरा एक दिन लगा । इसका विश्युद्ध परिणाम यह हुआ कि कितने ही अभियुक्त छोड़ दिये गये और बहुतोंकी सजा घटाकर उतनी कर दी गयी जितनी वे उस समयतक भोग चुके थे । मैं समझता हूँ कि फैसला सुनाये जानेके १५ दिनोंके भीतर ही. प्रत्येक अभियुक्त जेलसे बाहर निकल आया; कैवल एक या अधिकसे अधिक दो को छोड़कर जिन्हें लगमग छा महीने जेलमें और रहना पड़ा । इतने बड़े पैमानेपर 'चलाये गये इस प्रसिद्ध मुकदमेकी अपीकके इस तरह शीघतासे समास हो जानेका भारी प्रभाव सारे देशपर पड़ा । सुना जाता है कि विद्वान्‌ दौरा जज श्री यॉर्कने इसपर कद्दा था कि साराका सारा मामला एकदम अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है । अन्तमें प्रत्येक व्यक्तिको प्रसन्नता हुई और यही हालत मेरी भी हुई । मेरठ घड्यन्त्रके सुकदमेने वकीलकी हैसियतसे मेरे जीवनमें




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