बोधसार | Bodhasar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुरुस्तवः । श्डे
विनापि क्षेत्रमाहात्म्य॑ गुरुमाहात्म्यतः ' कि ।
विमुक्तियंत्र कुन्नापि न काइयां गुरुणा विना॥। १ ४॥।
विनापीति । श्षेत्रमाहात्म्यं श्रेत्रस्य काइयादिश्षेत्रस्य माहा-
त्म्य॑ सामथ्य विनापि राष्टित्यनापि यत्र कुत्रापि मुक्तिप्रदक्षत्रा-
न्यभूमावपि अपिदब्दात्कुग्रामोपरकीकटादाव पुण्यटेशेपि सुरू-
माहात्म्यतः नप्छ्छाएधकरटव विमुक्तिर्मोशधो जायते किलेति
प्रसिद्धमेतदागोपालं, गुरुणा बिना गुरू त्यक्का कास्यां मुक्ति-
प्रदसेन प्रसिद्धायामपि मुक्तिने जायते, अतो 5न्वयव्यतिरे का «या
गुरोरेव मुक्तिपरदर्स, क्षेत्रस्य तु तदथेवादमाज्रमिति भाव ॥। १४ ॥।
इदानीं क्षमाप्रसाद्राहित्येनान्यदेवतानां निकृष्टत्व॑गुरोस्तु
ताभ्यां पूणलाच्छेष्स्यमाह ।
क्षम्यतामिति कि वाच्यं प्रसीदेति किमुच्यताम् 1
क्षमाप्रसादसंपूर्ण: स्वभावादिव में गुरु: ॥ १५ ॥
इतिश्री योघसारेगुरुस्तवासिघ प्रदरणम ॥ १ ॥
सम्यतामिति । अन्यदेवतास्विव गुरो क्षम्यतां क्षमस्वेति कि
वाच्य किमथ वक्तव्य॑ निरथंकमेव तत्तत्रेत्यथे: । तथा पसीदेति
प्रसन्नो भवेति किमुच्यतां किम वक्तव्य॑ तदपि निरथेकं तत्रे-
तयथेः । कुता निरधेकलें क्षमापनमसादनयोस्तन ह में ड्ति
मद्रष्य्येत्यथे, . गुरूमोक्षिपदोगुरुः _ परब्रष्मरूपसा, स्वभावादिव
स्वत एवं क्षमामसादंसम्पूर्ण: क्षमया सहनतया प्रसादेन
प्रसन्नतया च संपूर्ण: परिपूर्णोडस्ति, अतः श्षमापनमस -
दनयोर्नैर थेक्यमिति भाव? ॥ १५ ॥।
इतिश्रीनरहर्राधिप्यदिवाकरछकती बोधघस्ारदी पी
न कह
रुरुस्तवाथंप्रकाद: प्रथम: ॥ १ ॥
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