भारत वीर | bharat veer

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bharat veer  by विश्वम्भरनाथ - Vishvambharnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भा०दी०-गरुककरण ३, (५) नारदपचरात्र । छोक-गुरूपदेशरहितस्स्वीयप्रज्ञासमन्वितः । - 'घृताजपुच्छतंत्यक्तगोपुच्छ इव मज़ति ॥ साषाथ-नितने गुरसे उपदेश नहीं टिया और शाख्पुराण वौँच स्वयं याने आपही ज्ञानवान अपनेको समझ जो मनमें आया सोई किया शासक आशय तो केंवठ गुरुददीसे गिठता है फिर उनकी कुगति याप्रकार होती यथा गंगादि नदके पार जानेवाढ़े गाइकी पूंछ प्रित्यागकर याने बकरेकी पूंछद्वारा पार कव जाय सकेंगे ताते शाख्रके आशय ज्ञाता गुरुद्वारा जानना चाहिये ताको प्रमाणभी है सो भ्रवणकर । पदमपुराणे। छोक-एवं शाह्ारायं ज्ञाता ओर ददनिश्रयः । सुह्नीयाच्छागुरामंत्र अ्द्धाभातिसमानितः ॥ भाषाथ-कहेगयेकी तरह जो जिन्ञासु, शाख्रका जाननेवाठा ज्ञातता शांति- जत ऐसा गुरुको जो आशप करता और श्रीमंत्रका उपदेश छेताहे उसीका कल्याण याने अविद्यारूपी अन्थकार जो नेत्रोंगिं है ताको नाश करदेताईे दाको अमाणभी हुनो । महाशिवसंहितायांमू । छेक़-अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया। चक्षरुन्मीछितं येन तरमे श्रीगुखे नमः ॥ भाषार्थ-अज्ञान सोई तिमिर याने अन्पकार अन्तस नेरेंमिं छारहाहे ताके निदृत्यथज्ञान अज्षनरुपीदे सोदिव्यचश्रू होजाते पसेही अन्तसके नेत्रोंको यह ज्ञान अजन है सो अंजन गुरुकी रुपासे मिछताहै तासे प्रथम गुरुकरके तासे ज्ञानोपदेश ढे । प्रमाण- ः थ योगवासिष्ट । छोक-उपदेशक्रमो राम व्यवस्थामात्रपालनम्‌ । नतेरतु कारण श्रद्धा शिष्यप्रजषेव केवरुए॥




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