अंतिम दर्शन | Antim Darshan

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Antim Darshan by विश्वम्भरनाथ - Vishvambharnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मीया फूल ` ११ ¢ / = क, ४०4 चुड़िया और नजदीक सरक आई। मुह के पास मह लाकर आंखों में श्रांख गड़ा कर जव उसने पुकारा “बेटा !” तब बेटे ने ध्यन्तिम सांस ली । बेटे की झांखें श्र खुल गह । मालम यह हो रहा था कि बेटा अपनी अम्मा का श्नन्तिम द्वेन कर रहा ई !! सुसांया फूल सणाल ने जिस दिन सततोश से कहा कि अब तो किसी भी हालत मे गाड़ी आगे नदीं चलती, केवल उसी दिनि सतीश का ध्यान भंग हुआ | उसने सन में सोच लिया बस अब नहीं जसे भी हो उसे यह कविता करने वाली आदत छोड़ ही देनी पड़ेगी । श्रन्यथा खणाल की ही क्या होगी । धीरे धीरे वह भी तो इस जीवन से थकी जा रही ह । सतीश कन्थे पर अपना कुत्तौ रख कर घर से निकला । शायद उसे यदह ध्यान न था कि आजकल के जमाने में यदि कोई कन्धे पर कृत्तो श्ख कर वाहर निकलता है तो उसे लोग पागल सम कते हैं । बह चलता रोज सतीश जैसे कितने दी कपड़ों के अभाव के कारण नंगे वदन सड़क पर भटका करते हैं, उसे कोन देखता है। सतीश को भी किसी ने न टोका । जान पहिचान वाला को रास्ते में सिल जाता तो -शायद टोकता भी | परन्तु उस दिन' कोई .वेसा मिला ही नहीं तो टोकता कौन । चह चलता ही गया |.




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