आदिवासियों की आर्थिक संरचना में महिलाओं की सहभागिता का अध्ययन | Aadiwasiyon Ki Arthik Sanrachana Men Mahilaon Ki Sahabhagita Ka Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Aadiwasiyon Ki Arthik Sanrachana Men Mahilaon Ki Sahabhagita Ka Adhyayan  by श्री रामनाथ - Shri Ramnath

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामनाथ सुमन - Ramnath Suman

Add Infomation AboutRamnath Suman

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
किसी प्रकार से पूंजीपतियों एंव बड़े लोगों के संरक्षण का कार्य करने में अधिक सफल हुए हैं ।' इस प्रकार भारत में औपनिवेशिक राज्य की स्थापना से कमोवेश देश के सभी क्षेत्रों के आदिवासियों में असन्तोष पनपने लगा। उनकी भूमि पर ऋण के बदले कब्जा का सशक्त विरोध आदिवासी कृषकों ने किया यही नहीं, साथ ही साथ उन्होंने ऐसे कब्जा करने वाले व्यक्तियों का सामाजिक बहिष्कार किया। परिणामतः: उन्हें भूमि से कब्जा हटाना पड़ा प्रश्न यह उठता है कि आदिवासियों आर्थिक संरचना वर्तमान में कैसी है तथा उसकी कौन-कौन सी समस्यायें हैं तथा इन्हें किस प्रकार से दूर किया जा सकता, ऐसे में अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों एवं नृतत्वशास्त्रियों का उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है। इनकी आर्थिक संरचना एवं समस्याओं के निराकरण के लिए अनेक समाजशास्त्रियों एंव नृतत्वशास्त्रियों ने अपनी अभिरूचि के अनुसार कारगर अध्ययनों को प्रस्तुत किया है, परन्तु इनका शोध कार्य लघु समुदायों के विकास की ओर रहा है। फिर भी इनके द्वारा आर्थिक विकास हेतु किसी विशिष्ट सिद्धान्त की प्रस्तुति नहीं की गयी है अर्थात्‌ साधारण विकास कार्यक्रमों की रूपरेखा ही उपयुक्त मानी गयी है | इस धारणा का एक कारण यह भी है कि उनकी समस्‍यायें लघु आकार की होने से सामान्यतः बड़े समूहों के लिए उपयुक्त नीति को ही समाधान योग्य मान लिया जाता है। परन्तु विकास की धारा या तो इन लघु समाजों से असम्बद्ध रही है अथवा उन पर कोई खास प्रभाव नहीं हुआ है। है ब्रिटिश शासकों ने जनजातियों के विकासोन्मुख हेतु एक सामान्य नीति का अनुसरण करते हुए विकास सम्बन्धी कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया। लेकिन जनजातीय संस्कृति ! राघवैया वी - “ट्राइबल रिवोल्ट” (1971), नेल्लोर, आ.प्र. राष्ट्रीय आदिम जाति सेवक संघ, पृ.सं. 261-66 पूर्वोक्त - पृ.सं. 268-70 * शर्मा, डा.ब्रहमदेव - पूर्वोक्त, पृ.सं. 115 * पूर्वोक्त - पू.सं. 117




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now