हिंदी - गद्य का विकास | Hindi Gadya Ka Vikas
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
435
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है
के श
में गद्य की प्रचुरता है । सामवेद तो ऋग्वेद के मंत्रों से ही बना है,
उसके ताण्ड्य ब्राह्मण में गद्य पाया जाता है । इसी प्रकार अथवंवेद के
गोपथ ब्राह्मण की रचना भी गय् में हुई है । कहने का अभिप्राय यह है कि
झाह्मण अ्रंधथों के समय गद्य की कोई कमी नहीं रही । उदाहरण के लिये
ऐेतरेय ब्राह्मण ३४।७ का जणुक गयांश तख्ियेः--
ण्तेन ह वा ऐन्द्रेण महाभिषेकेश च्यवनों भागवः शायतिं सान-
वमशिपिषेच तस्मादु शार्यातों सानवः समन्तं सर्वतः प्थिवी जय-
न्परीयायाश्वेन च मेध्येनेजे देयानां हापि सचे ग्ृहपतिरास इति ।'
बाह्मणों के अन्त में दार्शनिक अअध्यायों के रूप में आरण्यक और
उपनिषद् हैं । इनमें झाध्या्सिक बाते का सम्भीरतापूर्वक विवेचन किया
गया है । भारतवर्ष के आय: सभी दार्शनिक सम्प्रदाय ₹ बौद्धों और
जनों के अतिरिक्त ) इन उपनिषदों में हो अपना आदि अस्तित्व
स्वीकार करते हैं । ये तो उपनिषदों की संख्या अधिक है, लेकिन
उनमें से अधिक प्रसिद्ध ये दे--ईंश, केन, कठ, प्रश्न, सुर्डक, मा एडूक््य
ठैत्तिरीय, ऐत्तेरेय, छांदोस्य, चृहदारण्यक और स्वेताश्वतर । इनकी
रचना वेदिक-संस्कृत के अंत में हुई । श्रारण्यकों में गद्य की प्रचुरता है ।
ऋग्वेद के ऐतरेय अर सांस्यायन उ्मारश्यक इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
उपनिपदों के कुछ शंश तो सर्वथा गद्य में हैं और कुछ गय-पद्य मिश्रित
हैं। छांदोग्य उपनिषद् में गद्य के अच्छे नसने देखने को मिलते हैं ।
छान्दोग्य ज।२४ का एक उदाहरण देखिये--
यत्र नान्यत् पश्यति नान्यच्छणोति नान्यद् विजानाति तदू भूसा ।
अथ यत्रान्यत् पश्यति अन्यच्छुणोति श्न्यद् विजानयति तद्रपं यो
व भ्रूमा तदनब्ठतमश्र यदल्प तन्मत्यमू ॥
इसप्रकार वरंदिक संस्कृत में संहिता, झाह्मण, श्ारण्यक श्र उप-
लिषद् का निर्माण हुआ । बेदिक संस्कृत की भाषा, जेसा कि ऊपर के
उदाहरणों से स्पष्ट है बहुत सीदी-साधी है । इसमें छोटे-छोटे शब्दों का
प्रयोग पाया जाता है *ह” ये” 'उ”* ग्रादि श्रब्ययों का वाक्यालंकार के
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