भरत और भारत | Bharat Aur Bhaarat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
60
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र भरत भर भारत
भ्रसदृदसि का प्रदद ही नहीं उठता या । किन्तु, उनके जीवमकाल में ही भीभ-
भूमि समाप्त हो गयी । कल्पबुक्ष नि.कषेषप्राय: हो गये । कमेंमूमि का आरेम्स
हुमा 1 नये प्रश्न थे, सये हल चाहिए थे । मासिराय ने चंय-पूर्वक सनका
समाधान दिया । ये स्वय श्राण-सह बने । उन्हें क्षत्रिय कहां गया । 'क्जियरना-
णसहू:' उन पर बरिताथ होता था । भागे चल कर क्षत्रिय शब्द नाभि'
अरब में रूढ़ हो गया । झमर कोषकार ने “क्षत्रिये नाभि: लिख कर सन्तोष
किया ।' प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी 'प्नमिधात चिस्तामणि' में 'नाशभिवच क्षत्रिये'
लिखा है ।' उन्होंने ध्रपने पुरुषर्थ से सद्युग को जन्म दिया 1 प्रजा सुखी बनी
भर भोगमुमि के समान ही उसे सबंविध सुविधाएँ प्राप्त हुई । महाराजा
माभिराय स्वयं कल्पवक्ष हो गये । भगवज्जिनसेनाचार्य ने महापुराण में लिखा
है, “चन्द्र के समान वे भनेक कलाझओओ की झाधारभुमि ये, सूये के समात
तेजवान थे, इन्द्र के समान बैभवसम्पस्त थे भौर कल्पवृुक्ष के समान मनो-
वांछित फलों के प्रदाता थे ।*” उन्होंने युग-प्रबतन किया । श्राल कल की मोटी
परतें भी उनके नाम को नामझेष नहीं कर सकी । वे उसके (काल) वक्ष पर
तप्तशलाका से स्पष्ट लिखे रहे, रज.कणो मे अभ्ञक-पत्र से, दिशाश्रो में सू्-से
झौर भ्राकाश में धव नक्षत्र से दमकते रहे । कोई मिटा भ सका । वे जीवित
हैं, केवल वंदिकों में नहीं, झपितु मुसलमानों मे भी । भरबी का एक शब्द है
ग्तबी', जिसका भय होता है--'ईइवर का दूत' , 'पंगम्बर' भौर “रसूल ।'
बह शब्द सस्कृत के नामि' शभ्रौर प्राकृत के 'णासि' का हो रूपान्तर-मात्र है !
इसका झथं है कि उनका नाम बना ही नहीं रहा, अपितु 'ईश्वर के दूत' के
रूप मे धौर भी चमकीला बना ।
उनके नाम पर ही इस प्रायखण्ड को नाभि खण्ड था झजनाभवष कहा
गया । नाशि को झजनाभ भी कहते थे । स्कन्दपुराण मे, “हिसाद्िजलघेरन्त-
अर
''नामिश्च तम्नामिनिकर्तनेम प्रनासमाश्वासन देतुरासीत् 1?”
“मददापुराण, ३1२१७.
१. अमरकोष, ३1४५1२०.
२. अधभिधान चितामणि, १३६.
३. शशीव से कलाधार: तेजस्वी मानुमासिव । प्रभु शक्र इवामीष्ट फलद: कल्पशाखिवतु
मद्दापुराण , १२1१ १
४. 'उदू “हिन्दी कोश”, रामचन्द्र बमी सम्पादित, बिंन्दीअन्यरत्माकर कार्यालय,
बग्नई, चतुथ संस्करण, अगस्त १४४३, पृष्ठ २२४,
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