अग्निपुराण का काव्यशास्त्रीय भाग | Agnipuran Ka Kavyashastriya Bhag

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Book Image : अग्निपुराण का काव्यशास्त्रीय भाग  - Agnipuran Ka Kavyashastriya Bhag

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रामलाल वर्म्मा - Ram Lal Varmma

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सत्यदेव चौधरी - Satyadev Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ३ २) इस पुराण में विविध विपयों का संकलन विविध कालों में हुआ है । 'रे). इसके लेखक का उद्देश्य इसमें विविघ विषयों को संग्रहीत करके साघारण पाठकों का हित-सम्पादन करना था । '(४) . यद्यपि पाइचात्य विद्वानों ने इसे अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं माना, तब भी वे इसके प्रति उपेक्षा भाव न प्रकट कर सके । दे. अर्नि प्राण का लेखक भारतीय प्राचीन परम्परा के श्रनूसार महर्षि वेदव्यास को ही अ्ठारह 'पुराण, महाभारत, गीता द्ादि ग्रन्यों का कर्त्ता माना गया हैं, पर श्राधुनिक अनसधघान के बल पर इन्हे पुराणों का मूल कर्त्ता न माना जाकर सकलनकर्त्ता ही माना जाता है । प्रस्तुत पुराण का लेखक कौन है इस प्रदन का उत्तर संकेत रूप में ग्रत्पारम्भ में ही मिल जाता है । एक बार शौनकादि ऋषियों ने सुत से कहा कि श्राप हमे ऐसी सार वस्तु का उपदेश करें जिसके जानने से हम सर्वेज् हो जावें । महहर्पि सूत मे प्रत्यत्तर में अतिसारवान परा-श्रपरा नामक दो विद्याग्नों की चर्चा की जो उन्होंने वर्दारकाश्रम में महापि व्यास से श्रवण की थीं । सहर्पि व्यास ने वसिप्ठ से तथा वसिप्ठ ने श्रश्तिदेव से इन विद्याश्रों को ग्रहण किया था 1? इस कथन से स्पष्ट है कि परा--ब्रह्म विद्या, अपरा--वेद, वेदांगादि विद्या का ज्ञान मर्ह्पि सूत को प्राचीन दीघं॑ ऋषि-परम्परा से ही प्राप्त हुमा । इसके सर्वप्रथम वक्ता अश्विदेव हे, झतः इन्हे ही इस पुराण का लेखक माना जाना चाहिये । पर फिर भी समस्या का अन्त यहीं नहीं हो जाता, क्योंकि अग्निदेव तो इस परा श्रौर अपरा विद्या के वर्णयिता मात्र हैं न कि लेखक । इधर मत्स्य और स्कन्द पुराण अग्नि पुराण का परिचय इस प्रकार देते हूं :£-- '“ईद्ान कल्प सम्बन्धी जो ज्ञान अग्निदेव ने वसिप्ठ को कहा था अग्नि पुराण उसी का प्रकाद्य करता हैं । * इन कथनों से भी यह निप्क्प॑ निकाला जा सकता है कि श्रग्निदेव ने इसे १. अग्नि पुराण; श्रध्याय १1१ से १६ तक । २. यत्तदीशानकं कत्प॑ बत्तास्तमधघिक्ञत्यका 1 वसिष्ठायास्तिना प्रोक्तं श्रार्नेयं प्रकाइाते ॥ पस्टडीज इन दि पौराशिक रेका्ड स ऑन हिन्दू रोतीन एंड करूटम्स; पृष्ठ १३४)




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