अपराध | Aparadh

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Aparadh by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गया । इससे दो बातें सामने आई', एप दो रोमनों की बह कहावत “कानून नहीं तो अपराध नहीं” सत्य जैँचती है, क्योंकि कानून नहीं था तो शराब बेचना अपराध न था, ,कानून हुआ तो अपराध हो गया, फिर ,कानून न रहा तो अपराध न रहा । दूसरी यहा बात कि कानून से सदाचार से अनिवायं रुप से कोई सम्बन्ध नहीं है या ऐसा हम क्यों कहें; हम यह थी तो कह सकते हैं कि सदाचार (#ण्डठ!) । की घारणा परिवतनशील है । इस प्रकार हम एक बुनियादी प्रश्न पर पहुँच जाते हैं कि यदि सदाचार की घारणा *भी परिवतनशील मान ली जाय, तो उसमें होनेवाले परिवतेन का स्वरूप तथा नियम क्या हैं, कोई नियम हैं या नहीं ? सदाचार और क्रानून में प्रभेद दम पहिले यह निविवाद रूप से दिखला लें कि कानून और माने हुए सदाचार में अक्सर बड़ा मतभेद हो जाता हे, फिर हम आगे बढ़ेंगे । भूठ बोलना सभी सदाचार के अनुसार बुरा या अनेतिक तथा अधार्मिक है, किन्तु किसी भी देश के कानून में झूठ बोलना अपराध नहीं है । हाँ, यदि अदालत सें खड़े होकर कोई झूठ बोले तो उसकी बात और है । उस हालत में वह भूठी शहादत का दोषी समभा जायगा । इसी प्रकार सभी धर्म तथा नीति के अनुसार वेश्या होना या वेश्यागमन करना बुरा समझा जायगा किन्तु कालूनन न तो वेश्या होना ही अपराध है, न वेश्या के पैरों पर जाकर 'शराब पीकर पढ़े रहना । भुट्टे की एक बाली चुरा लेना कानूनन अपराध है, किस्तु वेश्या होकर स्वयं बिगड़ना तथा दूसरों को बिगाड़ने में कानून कोई बाधा खड़ा नहीं करता । फिर भी यदि एक साधारण व्यक्ति से पूछा जाय कि मुट्टे की एक बाली को चुरा लेना अधिक खराब है कि वेश्या होना या बेश्यागमन करना, तो वह बड़ी आसानी से फट से कह देगा कि वेश्या होना या वेश्यागमन




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