प्रायश्चित समुच्चय | Prayashchit Samuchchiya

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Prayashchit Samuchchiya by पन्नालाल सोनी -Pannalal Soniश्रीमदाचार्य गुरुदास - Shrimadaacharya Gurudas

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श्रीमदाचार्य गुरुदास - Shrimadaacharya Gurudas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सज्ञाधिकार । ग्र एक एक उपवासका फल होता है । “अरइत सिद्ध+ भायरिय, उपच्काया साहू यह सीलद अत्तरोंका 'ग्ररधषत सि सा” यह छह भरत्रोंका और 'भरइत' यह चार झत्तरोंका मन्त है ॥ १४ ॥ अकारं परमं वीज जपेद्यः दातपचकं । प्रोपघ॑ पाप्लयात सम्य रु शुद्धयुद्धिरतंद्ितः ॥ १९३ भ्र्थ--जो निर्मनउुद्धिगारी पुरुप झानसरहित होता: हुआ परमोत्कष्ट अकार पीजान्नरको पाय सी वार अच्छी तरह जपंता हैं वह एक उपबासका फल प्राता है । तदुक्त -- पणतीसं सोलसय छन्चउपय च बण्णवीयाईं । एउत्तरमदटसय साहिए प ( पे )च खमणद्धं ॥ झर्थ-एक सी श्राठ वार जपा हु पेंतीस भ्रप्तरॉका जाप; दोसी वार जपा टुभ सोलह भत्तरोंका नाप, तीन सी वार जफ हुआ छह भत्तरोंका जाप) चार सो बार जपा हुआ चार वीजा- त्तरोंका जाप भार पांच सी वार जपा हुआ पद--एक श्रकार या श्रॉकार वोजालरका जाप एक उपयासके लिए दोता है॥ १४॥ इति सशाधिफार प्रथम 0 १॥ जएनशएलकनन-




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