प्राचीन जैन स्मारक | Prachin Jain Smarak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७)
आशाधघरकी स्त्री पद्मावतीने प्रतिष्ठित कराई थी ( प० ९० |
संवतके उछेखसे अनुमान होता है कि सम्भवतः ये आशाधर उन
प्रसिद्ध ननाचाये 'कलिकालिदास' आशाधरनीसे अभिन्न हैं, जिनके
बनाये हुए ग्रन्थोंका जैन समाजमें भारी आदर है । ये आशाधर '
वघेरवाल नातिके थे और राजपूतानामें झ्ाकम्भरी ( साम्दर ) के
निवासी थे । मुसरमानोंके त्राससे वे वि० से० १९५४९में धारा-
नगरीमें और वि० से ० १९२६५में नालछे ( नलकच्छपुर ) में आ।
गये थे । उनके वि० से० १३०० तकके बने हुए अन्थोंमें नल-
कच्छपुरका उछेख मिकता है, पर मेहकरकी मूर्तिके लेखपरसे अनु-
मन होता है कि वि० से० १२७५के लगभग आद्याघरनी विदभ
प्रान्तमें ही रहे होंगे । वे वघेरवाल जातिके थे और इस जातिकी
बरारमें ही विशेष संख्या पाई नाती हे। उनकी स्त्रीका नाम अन्यत्र
सर्वती पाया जाता है, पर सरस्वती और प्झावती पर्योयवाची
दाव्द हैं. अतः उनका तात्पय एक ही व्यक्तिसे हो सक्ता है ।
यह भी अनुमान होता है कि सम्भवतः आशाधरनी जब बरारमें
श्रे तभी उन्होंने अपने ' मूढाराघनादपण * नामक टीका भ्न्थकी
रचना की थी | इस अन्थका उल्लेख उनके वि० सं ० १९८५से
लगाकर १३०० तकके बने हुए ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंमें पाया नाता -
है और वि० सें० १९७५के पूर्वके अंथोंगें नहीं पाया जाता ।
इस य्रंथकी प्रति भी अग्रतक केवल बरार प्रान्तान्तर्गत कारंनामें
दी पाई गई है, अन्यत्र नहीं । इन सब प्रमाणोंसे सिद्ध होता है
कि, आशाधघर जीने बव्रि० से» १२७५के लगभग कुछ काल बरार
'प्रान्तमें निवास किया और अन्थ रचना भी की ।
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