शासन पर दो निबंध | Shasan Par Do Nibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवती शरण सिंह - Bhagavati Sharan Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नश९-
से असंगत है। वास्तव में 25529 की प्रथम और द्वितीय पुस्तकें चतुर्थ पुस्तक के छिए
भूमिका प्रस्तुत करती हैं जिसमें ज्ञान के मूल तथा उसकी नि्चयात्मकता और सीमा को
निर्धारित करने का प्रयत्न किया गया है । लॉक के अनुसार उसके 8552४ का यही मुख्य
ध्येय हैं। इस दृष्टिकोण से विचार करने पर छ559 के अनुभववाद (फाफफसलंधाए
और दू ट्रीटिज़ेज़ के बुद्धिवाद (प्राकृतिक विधान की धारणा सम्बन्धी) का जो विरोध
प्रायः प्रदर्किति किया जाता है वह अतिरथ्जित और श्रासक है, क्योंकि वहू 55829
के चुद्धिवादी स्वरूप की उपेक्षा करता है ।!
प्राकृतिक विधान को लॉक बुद्धि का विधान मानता है। इसका ज्ञान गणित या
ज्यामिति के ज्ञान की ही तरह प्राप्त होता है । किन्तु गणित और नीतिशास्त्र में एक
विद्येप अन्तर है। नैतिकता की कल्पना ईदवर के अस्तित्व के बिना नहीं की जा सकती ।
कारणचाद के सिद्धान्त के आधार पर हम अपने अस्तित्व के ज्ञान से ईइवर के अस्तित्व
का अनुमान करते हैं। प्राकृतिक विधान उसी की सृष्टि हैं । ईदवर और प्राकृतिक
चिधान के सम्बन्ध के विपय में राजदर्शन के इतिहास में दो प्रसिद्ध मत रहे हैं । मध्य-
युग के कुछ विचारकों के अनुसार प्राकृतिक विधान की उत्पत्ति ईश्वर में व्याप्त वृद्धि
से है। ईदवर अपनी इच्छामात्र से इसमें परिवर्तन नहीं कर सकता । प्राकृतिक विधान
इसलिए ठीक नहीं है कि वह ईर्वर का भादेश है बल्कि ईश्वर ने उसे इसलिए समा-
दिप्ट किया है कि वह स्वतः ठीक है। ये विचारक [२८४55 कहे जाते हैं। विधान-
बास्त्र (फुफ्सं5ूाए60८८) में यह सिद्धान्त वुद्धिवाद (1ए्रश्लीटटघभीडद पफटणप
0० 1.29) के नाम से प्रचलित है जिसके अनुसार विधान संप्रभु (50४८०) की
आज्ञा, (0०020 ) नहीं है, वल्कि प्रकृति एवं मानव में निहित वुद्धिसंगत व्यवस्था
की अभिव्यक्ति है । इसीलिए वह लासक तथा शासित दोनों को बाध्य करता है ।
इसके विपरीत ?ए०प्मंणश156 कहे जानेवाले विचारकों का मत यह है कि प्राकृतिक
विधान ईदवर की इच्छा का च्योतक है । दँवी इच्छा पूर्ण स्वतन्त्र है। वह वौद्धिकता
1. लक के दर्शन के बुद्धिवादी पहलू को महत्व देनेवाली छृतियों में थे मुख्य हैं--.है.. 0.
फिव्िडला, व एक (गधा उधिकाबा उविावाावए, (0र्तण्प्त, 1894)
क्चण०तपटपि0, बए0े ऐे0६6५; वुधाट्ड (०509. [02 पाकहमाा मे. उन
दी दि दिव्या उड््िंगरण ((णरिघंपडष, 1917; किट किए, िणकुर
(मधु सका. (वकबावड [क्छंतुडतठ ब्ाघण्ण, 0णित, 1924)
काध्०तेपरटि0 ; न... सिप्राए्ड, ि०फ़ट रिणाएड उ फट शि्ा050५
रू.०द6,* एि०5ण०फुठिक, 1937,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...