जोनराज के राजतरंगिणी | Jonaraja ke Rajatarangini

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Jonaraja ke Rajatarangini by डॉ. रघुनाथ सिंह - Dr. Raghunath Singh

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रघुनाथ सिंह (भारतीय राजनीतिज्ञ) :-

रघुनाथ सिंह (१९११ - २६ अप्रैल १९९२) एक स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता, तथा लगातार ३ बार, १९५१, १९५६ और १९६२ में वाराणसी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के तरफ से लोकसभा सांसद थे। वे स्वतंत्र भारत में, वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के पहले निर्वाची सांसद थे। १९५१ से १९६७ तक, तगतर १६ वर्ष तक उन्होंने वाराणसी से सांसद रहे, जिसके बाद १९६७ के चुनाव में उनको पराजित कर, बतौर सांसद, उन्हें अपनी सादगी और कर्मठता के लिए जाना जाता था।

निजी एवं प्राथमिक जीवन तथा स्वतंत्रता संग्राम -

वे मूलतः वाराणसी ज़िले के खेवली भतसार गाँव के रहने वाले थे।उनका जन्म

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अप्राप्य पाण्छुठिपिया प्रकाश में आई हैं । इस ताछिका से काश्मीर सम्बन्धी ग्रत्यो के अध्ययन में सहायता मिली है । मेरे पास आभार प्रकट करने के लिये दृढते भी शब्द नही मिलते । +.. ज्योतिप सम्बन्धी तथा कालगणना के सम्बन्ध में में स्वयं ज्योतिप ज्ञाता न होने के कारण श्री डॉ० राजमोहन उपाध्याय पुत्र स्वर्गीय पण्डित भागवत उपाध्याय ग्राम बनौली, डाक नौहूट्ठा, जिला शाहाबाद, ज्योतिषा- चायें, एम० ए०, पी० एच० डी०, विभागाष्यध्य काशी विश्वविद्यालय एवं प्रधान सम्पादक पिदयपंचाय से परामर्श छेता रह है । उनकी अमूल्य सम्पतियों को यथा स्थान पुस्तक में स्थान दिया गया है 1 काशी हिन्दूविश्वविद्यालय के भ्ोफेरार डायटर श्रीस्ठन जी गोपाल ने कल्हण की राजतरणिणी के समान इस प्रत्य लेलन में मेरा मार्ग प्रदर्दन किया है। उनका बैंय॑ तय परिश्रम स्तुत्य है। उनके कारण मतेक आधुनिक अनुसर्धानो, मुख्यत. 'मुद्दा' बादि के ज्ञात पर प्रकाश पड़ा है, अनेक नवीन दातें मालूम हुई हूं । उनके प्रत्ति आभार प्रकट करने के लिये मुझे शब्द खोजना पढेगा । सदर प्रत्यो का उत्लेह पाद टिप्पणी में किया गया है। इदोको के सम्बन्ध में पाद टिप्पणी है, मतएव सन्दर्भ प्रत्यो को पुनः पाद टिप्पणी के वाद टिप्पणी में बताकर देना अशोभनीय छगता ला साथ ही पह प्रचछित दौली भी नही है। मैंने करहण राजतरंगिणी की हो भाष्य एवं टिप्पणी दा इसमें अनुकरण किया है. | मैंने कहहण, जोन राज, श्रीवर तथा शुक सभी राजतरंगिणियों का भाष्य लिखने की योजना बनायी हू । अतएव उनकी सैनी भी पाठरी की सरठता के छिये एक ही जेपी रखी है 1 मैंने दस ग्न्य की शैली श्रीस्टीन द।रा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक कल्हण राजतरंगिणी के आददों पर ही रखी है । श्रीस्तीन से भारत तथा कारमीर कभी उक्ण नहीं हो सकते । उन्होने काइमीर को पिश्य के सम्मुख उसके उउज्वल गौरवशाली रूप में उपस्थित किया है । उप प्रमय कार्मीर में रंस्टात् के प्रसिद्ध विद्वान उपस्थित थे। काइमीर ने आधुनिक कलेवर गहीं बदला था । कुछ ध्वसावभेष आदि अपने मुखरूप में थे। उनके समय और आाज के समप में अन्तर हो गया है । वितने ही ध्वसावशेप छुप्त हो चुके हैं। ठोग उन्हें भूढ भी चुके हैं। तथापि मैंने उन्हें पुनः देखा है. अध्ययन पर छिंसा है। पादटिप्पणी में स्थानों था मूल तपा वर्तमान नाम, उनकी भीगोदिक स्थिति तथा इतिहास दिया गया है। श्रीदत्त ने पाठ की मशुद्धि के कारण जहाँ अनुवाद ठीक नहीं दिया है, उसरा भी उल्लेख कर दिया गया है। बे स्पष्ट करने के लिये जिन अतिरिक्त शब्दों बी आवश्यकता पडी है । उन्ह वोछ्ठ में दिया है । अनुवाद में वठिनिता का बोध होने पर वाधी के गणमान्य सश्दत विद्वानों से सहायता छी है ।. जहाँ रान्तोप नहीं हुआ है, पहाँ सभी अनुवादों दो छिप दिया है । नेशनछ लाइप्रेरी, बलरत्ता, ईरान सोसाइटी लाइब्रेरी, धर्मतल्टा, बलकतता, एशियाटिक सोसाइटी लाइवेरो बजवत्ता, , रधुनाथ मन्दिर पुस्तकालय, जम्मू, घाराणसेय सस्कृत विश्वविधाठप, काशी हिन्द विश्वविद्यालय, उदयपुर पिश्वविद्याठय, श्रीनगर राजकीय रिसच विभाग, प्रठापसिह संप्रहालय धीमनगर, प्रातह्य विभाग घीनगर, सर्व भारतीय काशिराज न्यास रामनगर दुर्ग, बाशी, वर्स्वई सेट लाइग्रेरा, काशी (७ ३




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