सार्वदेशिक | Sarvadeshik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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No Information available about इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महर्षि दयानन्द और झार्य समाज
( अन्यों की दृष्टि में )
( गताज् से आगे )
यह खेद की बात है कि महषि दयानन्द ने
बेद के प्रामाग्य पर. बत. देते हुए
उपनिषदों के महत्त्व पर पर्याप्त बल नहीं दिया
जिनमें वेद संहिताश्रों की बिशद व्याख्या
विद्यमान है और उन्होंने गीता जेसे धर्म शास्त्र
की प्रामाणिकता स्वीकार नहीं की जो उपसिषदों
का सार है इसका कारण यह प्रतीत होता है
कि वे विष्णु पुराण झौर भागवत में चित्रत
कुष्ण के पौराणिक चित्र से बहुत खिन्न थे ।
यदि वे गीता को अपनी शिक्ष,्रों में सम्मिलित
करके उसके कर्म सिद्धान्त की ठीक व्याख्या
करते जो उनकी प्रगत्ति और दृष्टिकोण के अनु
कूल था तो उनके हाथ हजारों गुना दृढ़ हो गये
होते । हिनू धर्म को सुम्तिदिचित रूप देने से
उनके संदेशों में शक्ति का मैंचार हुआ श्रोर हिंदू
धर्म को पवित्र करके समात हिंदुओं को एक भंडे
के नीचे लाकर विरेशी पेंतों के आक्रमण से
उसकी रक्षा करने का उनका तात्कालिक उद्देय
भी पूरा हुआ । इसमें सदेह नहीं है कि द्यानन्द
द्वारा संग्थापित श्राये समाज हिंदू धर्म के त्रक्षस्थल
पर सेनिक चर्च है श्र यदि कोई देश मक्त हिंदू
उनके कार्य के महत्र को करके दिखाना चाहे तो
उसके लिये यह शोमा की बात ने होगी। हिंदू
समाज की मयंकरतम त्रुटियों के मूल पर प्रद्वार
करके श्रौर उसके समस्त बर्गों को एक साथ
बोलने में सम बना के आज आये समाज तीन
अत्यन्त महृ्त्र के आन्दोलनों को हाथ में लिए
पुकह िफावपांनाण घपाएपूट्री। (प€ औद्दन्ड
हुए है-शुद्धि; संगठन और शिक्षा प्रसाली ।
शुद्धि उस दीक्षा-संस्कार का नाम दै जिसके
द्वारा श्रहिंदू जन हिंदूधम में प्रविष्ठ किये जाते हैं ।
इस साधन से श्राये समान्न न केवल दलित बगे
और अस्पर्य कहे जाने वाले भाइयों को यज्ञो-
पवीत देकर उन्हें अन्य हिन्दुओं के समक्ष दी
नहीं बनाता अपितु उन हिन्दुओं को भी जो
मुसलमान झ्रीर ईसाई बन गए हैं या बन जाते
हैं, शुद्ध करके हिन्दु समाज में ले श्राता है।
इतिहास साक्षी है कि हिन्दु धर्म ने अपने शक्ति
वाल में शरिदेशीय जातियों और राष्ट्रों के सहसों
पुरुषों को अपने में घुला मिलाकर उनमें से कुछ्लेक
को उच्च सामाजिक स्थिति प्रदान की । विस्तार
के वर्तमान युग में आयें समाज शुद्धि को झपने
कार्यक्रम का अ'ग बनाकर प्राचीन कालीन महान्
हिन्दू नेताओं और राजनीतिज्ञों के पद चिन्हों
पर चल रहा है ।
आयसमाज के कायक्रम में दिन्दु संगठन का
अभिप्राय है आत्मरक्षा वे लिए हिन्दुओं का
संगठन । श्रन्य मतों के उपदेशकों द्वारा हिन्दू
भमे पर किये गए शात्तिप और शाक्रमण को,
किसी भी हिन्दू को सहन न करना चाहिए ।
इतना हो नहीं, हिन्दु्नों को श्वपने में वीर भाव
घारण करके शत्रु के गढ़ में जाकर उसके श्राक्रमण
का सामना करना चाहिए ।
स्वामी दयानन्द ने ईसाई शोर मुसलमानी
नामक पुस्तक पर झाधारित- लेखमाला
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