तुलसी - दल | Tulsi-dal (parmarth Granthmala )

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Tulsi-dal (parmarth Granthmala ) by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तेरी हँसी चाहते हैं, यह बुद्धिका सूबमसे सूकष्मतर होते-होते सर्वेथा विछुत हो जाना नहीं तो क्या है १ जठका जरा-सा नगण्य कण सब ओरसे परिपूर्ण पारावारददीन जलू-निधिका अन्त जानना चाहता है, यह असम्मव भावना नहीं तो कया है १ जबतक वह अठग खड़ा देखेगा तबतक तो पता ठगेगा कैसे * और कहीं पता छगाने- की छगनमें अन्दर चला गया तब तो उसकी अछग सत्ता ही नष्ट हो जायगी, फिर पता ठगायेगा ही कौन * जो हूँढने गया था, वहीं खो गया ! अतः हे महामहिम मुनि-मन-मेहनन मायिक-मुकुट-मणि राम ! मेरी समझसे तो तेरे इस हास्यका मम जाननेकी सामथध्य जगत्‌के किसी भी प्राणीमें नहीं है । हो, कोई तेरा खास प्रेभी तेरी छृपासे रहस्य समझ पाता होगा, परन्तु उसका समझना न समझना हमारे छिये एकसा है, क्योकि वह फिर तुझसे अलग रहता ही नहीं-- सो जाने जेहिं देह जनाई | जानत तुमहिं तुमह्दि दो जाई ॥ जो तेरी मधुर मुखुकानपर मोहित होकर तेरी ओर दौड़ता है, और तेरे समीप पहुँच जाता है, उसे तो तू अपनी गेदसे कभी नीचे उतारता नहीं, और जो विषय-विमाहित हैं उनको तेरे रहस्यका पता नहीं ! आश्चर्य है कि इसपर भी हम तेरी छीठाओंके रहस्योदूघाटन- का दम भरते है और जो बात हमारी स्थूछ बुद्धिमें नहीं जेंचती, [७9




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