क्या धर्म बुद्धिगम्य है | Kya Dharm Buddhigamya Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घर्म और वेयक्तिक स्वतस्त्रता
मैं घर्मकों जोवनके लिए बहुत आवदयक मानता हूं । वह हमारी सुख-
शान्तिका सर्वोच्च हेतु है । सुख-शान्तिका अनुभव स्वतन्त्र वातावरणमें हो
हो सकता हैं । हम दूसरे राष्ट्र या दूसरी जातिसे ही परतन्त्र नहीं होते,
किन्तु अपनी मिथ्या मान्यता और अपने आवेगोंसे भी परतन्त्र होते हैं ।
हमारी वैयक्तिक स्वतन्त्रता उतनी ही सुरक्षित होगी, जितने हम
घामिक होगें । धर्मसे हमें आत्मानुशासन प्राप्त होता हैं और वह हमारी
स्वतन्त्रताका मूल मन्त्र है ।
हर सामाजिक मनुष्य भोतिकता और आध्यात्मिकताके संगममें जीता
है। भोतिकता जीवनकी भपेक्षा है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता । पर वह
जोवनका ध्येय नहीं है और होना भी नहीं चाहिए । आध्यात्मिकता
जीवन-निर्वाहको अपेक्षा नहीं है पर वह हमारा ध्येय है । हम उस ओर
चलते हैं, तब भौतिकता खतरनाक नहीं बनती ।
सभी देशों और कालोंमें आध्यात्मिकताका विकास हुआ है । सभी
घर्मोने न्यूनाधघिक मात्रामें उसे महत्त्व दिया है। इसीलिए हर धर्ममें
अहिसा, सत्य और अपरिप्रहकी चरचा मिलतो है ।
साम्प्रदायिकता, रंग-भेद, जातोयता, प्रान्तीयत्ता, राष्ट्रीयता, भाषाबाद
आदि दोष, जिनसे मनुष्य-जाति विभक््त हैं, तबतक नष्ट नहीं होंगे, जब-
तक घर्म जोवनमें नहीं आयेगा ।
अणुब्रत-आन्दोलन इस बातपर बहुत बल देता है कि धर्म उपासना-
कालमं हो नहीं, जोवनके हर व्यवहारमें होना चाहिए । मनुष्यका व्यवहार
नतिकतासे और नैतिकता आध्यात्मिकतासे प्रभावित होनी चाहिए ।
क्या घर्म बुद्धिगम्य है ?
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