क्या धर्म बुद्धिगम्य है | Kya Dharm Buddhigamya Hai

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Kya Dharm Buddhigamya Hai  by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घर्म और वेयक्तिक स्वतस्त्रता मैं घर्मकों जोवनके लिए बहुत आवदयक मानता हूं । वह हमारी सुख- शान्तिका सर्वोच्च हेतु है । सुख-शान्तिका अनुभव स्वतन्त्र वातावरणमें हो हो सकता हैं । हम दूसरे राष्ट्र या दूसरी जातिसे ही परतन्त्र नहीं होते, किन्तु अपनी मिथ्या मान्यता और अपने आवेगोंसे भी परतन्त्र होते हैं । हमारी वैयक्तिक स्वतन्त्रता उतनी ही सुरक्षित होगी, जितने हम घामिक होगें । धर्मसे हमें आत्मानुशासन प्राप्त होता हैं और वह हमारी स्वतन्त्रताका मूल मन्त्र है । हर सामाजिक मनुष्य भोतिकता और आध्यात्मिकताके संगममें जीता है। भोतिकता जीवनकी भपेक्षा है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता । पर वह जोवनका ध्येय नहीं है और होना भी नहीं चाहिए । आध्यात्मिकता जीवन-निर्वाहको अपेक्षा नहीं है पर वह हमारा ध्येय है । हम उस ओर चलते हैं, तब भौतिकता खतरनाक नहीं बनती । सभी देशों और कालोंमें आध्यात्मिकताका विकास हुआ है । सभी घर्मोने न्यूनाधघिक मात्रामें उसे महत्त्व दिया है। इसीलिए हर धर्ममें अहिसा, सत्य और अपरिप्रहकी चरचा मिलतो है । साम्प्रदायिकता, रंग-भेद, जातोयता, प्रान्तीयत्ता, राष्ट्रीयता, भाषाबाद आदि दोष, जिनसे मनुष्य-जाति विभक्‍्त हैं, तबतक नष्ट नहीं होंगे, जब- तक घर्म जोवनमें नहीं आयेगा । अणुब्रत-आन्दोलन इस बातपर बहुत बल देता है कि धर्म उपासना- कालमं हो नहीं, जोवनके हर व्यवहारमें होना चाहिए । मनुष्यका व्यवहार नतिकतासे और नैतिकता आध्यात्मिकतासे प्रभावित होनी चाहिए । क्या घर्म बुद्धिगम्य है ?




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