रवींद्र साहित्य भाग 3 | Raviindra Saahity Bhaag 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Raviindra Saahity Bhaag 3 by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'

Add Infomation AboutDhanyakumar JainSudhesh'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सडककी बात: कहानी ११ कौन हो बिटिया ? क्या इस नि्जन रात्रिमें भी कहीं कोई मेरी छातीपर आश्रय ढेने आता है ! तू जिसके पाससे छोटी है क्या वह मुझसे भी कठोर है? तूने जिसे पुकार-पुकारकर कुछ जवाब नहीं पाया, क्या वद्द मुझसे भी बढ़कर गूँगा है ? तून जिसकी तरफ देखा हे, क्या वह मुझसे भी ज्यादा अन्धा है ? बालिका उठ बेठी, खड़ी हो गई, आँखें पॉंछ डालीं, और फिर, मुझे छोड़कर चली गई । शायद वह घर ढछोट गई, शायद वह अब भी शान्तमुखस घरका काम-घन्घा करती होगी, शायद वह किसीस भी अपने किसी दुःखकी बात नहीं कहती दोगी । हाँ, किसी-किसी दिन संध्या-समय वह घरक आँगनमें चन्द्रमाकी चाँदनीमें पर फंलाकर बढ़ी दिखाइ देती है ; उस वक्त कोई बुलाता तो बह चॉक पड़ती ; और झट उठकर भीतर चली जाती । पर मैंन उसके दूसरे दिनसे आज तक फिर कभी उसके चरणोंके स्पराका अनुभव नहीं किया । एस कितने ही पाँबोंके दाब्द नीख हो गये हैं। मैं क्या उनकी याद रख सकती हूं ? सिफ॑ न पाँवॉकी करुण नूपुरध्वनि अब भी कभी-कभी याद आ जाती है। पर मुझे क्या घड़ी-भर भी दोक या सन्ताप करनेकी छुट्टी मिढती है ? शोक किस किसके छिए करें ?. ऐसे कितने ही आते हैं. और चले जाते हैं । उफ्‌ , कंसी कड़ी घाम है ! एक-एक बार साँस छोड़ती हूं और तपी हुई धूल सुनीठ आकादाको घुआँधार करके उड़ी चढ्ठी जाती है। अमीर और गरीब, सुखी और दुःखी, यौवन और बुढ़ापा, हँसी और रोना, जन्म और म्रत्यु सब-कुछ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now