पुरुषार्थ | Purasharth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 घु ही चर ग्र्ताव ना है। इस ध्यालिक अन्पीक्षा-पराति के द्वारा चितनयनस-सरयाधुसन्थान से ही रस-माव प्रद्ति चिसघूत्तियों के प्यक्षक शकाशक दारीरक पदार्थ का ज्ञान, और उनके नाम, सर्या, श्परुप, सरक्षण, प्रभाग, परिणास वा कार्य, आदि फा ययार्य चिश्िप्ट शान होना समय ह। सुतरा, फियी नं चिपय पर आप्या सिक ( सानय-स्पमाव-विज्ञानाइयुसारिणी ) दृष्टि से ही विचार करने चाले श्री सगयामु दास ती को, यदि, अध्यारम परियार के ही परम परिचित, रस प्रम्दति भादी फा. इतना पूर्ण परिज्ञान टजा, सो इस से आ्ाषयंचकित होने का कोई कारण नहीं, पर इतना तो सानना पता ऐ कि श्रद्धेय जी की 'रस-मीमासा”, सादिस्यिक घायायर में एक नयी क्रान्ति, उपन्ा, था आविप्फार हैं । इस पर विश्ेप लयघान और मनन करना, तथा तदुनुसार 'रस'-सेवन की उचित मर्यादा यॉध कर लींफिफ जीचन को सरस और सुसी चनाना, प्रत्येक परद्टित ओर भार्मटित चिंतक सप्तन का श्रेयरफर कर्तव्य है । फामशाख के आध्यात्मिक तत्व” जैसे 'पुरुपार्थ' के पूर्व भरध्यायों से, 'सादित्य जौर रस के सम्पन्ध मे, मौलिक, “अपूर्व , विचार श्ररूद हुए है, पैसे दही, दस म्रन्थ के चतुर्थ---. 'कामाध्यात्म”--अध्याय में ( प० १७०७-४६० ) कामशासर के साध्या- स्मिक तत्व का निरूपण, यठी आर भरी से किया गया है । साहित्य और रस-धास्त्र का, कामशाखर से त्ादात्म्यं-सम्पन्ध हैं, अत' इन में से एक के निरूपण के प्रसद्ध में दूसरे दोनो का विचार भी भा ही जाता है। और साहित्य, रस, काम खादि सभी पेतस तथ्य, है भी एक ही अध्यात्म था शारीरक परिवार के अचयव 1 यर बतलाया ही जा चुका है कि श्रद्धेय भगवान्‌ दास सी जाध्यात्मिक परिवार के तत्वविज्ञान मे बडे निषुण, और अम्यात्म-दृष्टि से, चथा तन्मुलरु चिचार-पद्धति से, ही तस्पाध्धिगम करने के मभ्यम्त हैं । जाप के इस अभ्यास के परिणाम भीर उदाहरण शाप के शनेक ैंग्रेज्ी अन्थ है, ( इस पुस्तक के अन्त में श्रन्थ सूची देखिये 9 ; , यथा समन्वय” “प्रयोजन भादि हिन्दी अथ भी । ये सभी जध्यारसमूकक




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