भारतदेश वैभव भाग 3,4 | Bharatesh - Vaibhav (Bhag - 3,4)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री - Vardhman Parshwanath Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्व॒रयंवर संधि, की
वि
भरतजी सचमुचर्म पुण्यशाली महाला हैं । क्योंकि जिनके कारण
से बढ़े बढ़े योगियोंकिं दृदयका भी झस्व दूर हो एवं उनको ध्यानकी
तिद्धि द्वोकर केदल्यशी माह हो, उनके पुण्यातिशयरा वर्णन कया
करें £ इसका एकमात्र कारण यह हैं छि उन्दें मादम है कि लात्म
साधनकी पिषि क्या है ? परपदार्थोंर कारणते चेचल होनेवाले आता
को उन विकल्पों इटानिका तरीका कया है १ उसी अनुभदका प्रयोग
पाहुबलिके दल्यकों दूर करनेमें उन्दोंने किया ।
इसके भलावा दे प्रतिनित्य व. परमापाकों इस रूप स्मरण
फरते हैं कि--
. हे परमात्मचू | आप पद़िले अल्पप्रकाशरूप धर्मध्यानसे
प्रकट दोहे हैं । चितका नेमेस्य घटनेसे अत्याधिक उज्वरू प्रकाय
रूप शुक्ुध्यानसे प्रकट होते हैं । इसलिए हे चिदंबरप्ररप ! मेरे
हुदय्म बने रहो ।
इति-श्रेण्यारोहण सेचि !
नल (न
अथ स्वयंवर संधि,
भगवान बाहुबलिस[मी, अनेतवीय एवं कच्छ मदाकच्ठ योगि-
योको केवलूज्ञान हुआ इससे भरतजी बहुत प्रसन्न हुए हैं । उसे स्मरण
करते हुए लानंदसे अपने समयको व्यतीत कर रहें हैं ।
महादल राजकुमार व रतबल राजऊुमारका योग्य दयन बहुत
वैभव साथ विवाद कर पितूदियोगके दुमखको मुढाया
अपने दामाद राजइुमारोंसी एवं लपनी पुरियोंशो कभी रे दु
कर उनको जनेरे दिएलट सेंएषि दूश्र सेजठे थे ३ पूस पषर बट
लानंदू् भरहजीका समय जारहा ६ं ।
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