प्रेरणा की दिव्य रेखाएं | Prerana Ki Divya Rekhaen

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Prerana Ki Divya Rekhaen  by नानालाल जी महाराज - Nanalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৮ = शाश्वत सौन्दर्य (7) सकता है| दूसरो की अपेक्षा रखने वाला व्यक्ति निर्बल और निराश होता है। अपने पुरुषार्थं पर भरोसा करने वाला व्यक्ति ही सफलता का वरण किया करता है | इन आठ कर्मो की शिलाओ को हटाने का काम आसान नहीं है। यह एक अत्यन्त कठिन कार्य है परन्तु प्रबल पुरुषार्थ के वारा साध्य हे ! यह आपका सदभाग्य हे कि आपकी रपोचो इन्द्रियो की शक्ति खुली हुई हे, आपके हाथ-र्पोव खुले दै, आपका स्थूल ओदारिक शरीर से खुला दे, केवल आत्मिक शक्ति शिलाओ से दवी हुई हे | एसी स्थिति मे आप अपनी इन्द्रियो का, शरीर का ओर शरीर के अगोपागो का उपयोग आत्मा की दबी हुई शक्तियो को प्रकट करने मे करेगे या खान-पान नाच-गान मे लगाएँगे, यह बात मै आपके विवेक पर छोडता हू । पर्युषण एक पावन प्रसग भाइयो । पयुर्षण पर्व का आज प्रारम्भ हो रहा है। आत्मा पर पडी हुई आठ कर्मों की भारी शिलाओ को हटाने के लिए पुरुषार्थ करने हेतु आठ दिन के पर्युषण पर्व का पावन प्रसग हमारे सामने उपस्थित हुआ है। आत्मा के अभ्युदय का एक सुनहरा अवसर पर्युषण पर्व के रूप मे हमे प्राप्त हुआ है। यदि हम चाहे तो इस महान्‌ आध्यात्मिक पर्व के प्रेरक सदेश को हृदयंगम करके अपनी आत्मा की दबी हुई अनन्त शक्तियो को उजागर -कर सकते है । एक मौका फिर आया है अपनी आत्मा को जागृत करने का एकु स्वर्ण अवसर मिला है मोह के अन्धकार को चीर कर आत्मा ' निर्मल ज्योत्स्ना को प्रस्फुटित करने का । एक सुन्दर प्रसग आया हे, आत्मा के सशोधन का ।




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