समालोचना समुच्चय | Samalochana Samuchachy

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Samalochana Samuchachy by महावीरप्रसाद द्विवेदी - Mahaveerprasad Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गापियां की भगवद्धक्ति है घरों से चन की दोड़ जातीं। शायद हो कुछ खियाँ उस रात के! घहाँ जाने से रह गई होंगी । झ्रच्छा, जा वहाँ गई उनके लोटने पर थी, उनके सम्बन्ध में, काइई घटना या दुर्घटना नहीं हुई । कम से कम पुराणों में इसका उल्लेख हमारे देखने में नहीं झ्राया कि उन गेापियेों को उनके कुडुर्बियां ने घर से निकाल दिया, या उनका त्याग कर दिया, या उन्हें इ्यौर ही काई सज्ञा दो। इसमे सूचित होता है कि गेापियों के कुटुम्बी भी श्रीकृष्ण के काई झ्रलोकिक पुरुष नहीं तो महात्मा ज़रूर ही समझते थे। अझतएव च्पनी स्त्रियां को उनसे प्रेम करते देखकर भी या तो उन्होंने उनके उस काम का बुरा नहीं समझा या यदि बुरा भो समझा ता उनके उस झाचरण के देखा-धनदेखा कर दिया । परन्तु यदि झाप यही मान लें कि गेापियें का व्यवहार लोक- दृष्टि से निन्यय था तो परचाक-दूष्टि से तो वह प्रशंसनीय ही माना जायगा । भगवद्भक्त अपनी 'घुन के पक्के होते हैं । उन्हें उनके निश्चित माग से काई हटा नहीं सकता । उन्हें निन्दा श्र स्तुति की परवा भी नहीं होती । वे रूढि झोर लाकाचार के दास नहीं होते । मीरा की क्या कम निन्‍दी हुई ? उन पर क्या लाज्छन नहीं लगाये गये ? उनके कुदुस्वियें ने क्या उनका परित्याग नहीं किया ? परन्तु यह सब होने पर भी मीरा ने यह कहना न छाड़ा-- मेरे तो गिरिघर गोपाल दूसरा न कोई । कुछ कुछ यही दशा तुलसीदास, कबीर, चैतन्य, रोदास, पलट घ्यादि की सी हुई है । जा झायपथ' कहा जाता है उसे छेप्डने वाले किस साघु पर कलंक नहीं लगा ? कलंक लगाने घ्योर निष्टुर ब्ाक्षेप करने वाले कुटुर्बियेां का त्याग इन साघुझों ने ठणदत्‌




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