हिंदी महाभारत | Hindi Mahabharat
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.8 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अलुशासभपे 1] -व्शररपिकिि-. ० प्र्श”
जलदी हुई लकड़ियों से जा रस निकला था वह मास, पक्ष, दिन-रात और सुहुतैरूप हो गया |
उसके बाद अ्नि से रुधिर, रुघिर से रौद्र घार सुवर्शवर्ण मैत्र देवा, धुरेँ से वसुगण, शिसा से
बारह आदित्य रार अट्वार से ग्रहद-नक्षत् आदि की उत्पत्ति हुई। इसी से महपि लेगग अभि को
सर्वदेवमय कहते हैं।. प्रज्ञापति न्रह्मा मे झम्ि को परत्र्म कहा है 1
भ्रूण आदि की उत्पत्ति हो जाने पर वारुणी-मूतिधारी भगवान् शड्डूर ने देवतात्रों से
कहा--दे देववात्री ! मैंने यह यज्ञ किया है, मैं हो इस यज्ञ का श्रघीखर हूँ । अतएव सबसे
पहले जा तीन पुत्र अभि से उत्पन्न हुए हैं वे मेरे हैं । मैंने यज्ञ किया है, इसलिए यज्ञ से जा
कुछ उत्पन्न हुआ हे बह सब मेरा है ।
अभि ने कद्दा--हे देवताओं, ये तीन पुत्र मेरे अट्ठ से उत्पन्न हुए हैं। अतपव ये मेरे हैं।
वरुण-रूपी भद्दादेव का इन पर कोई अधिकार नहीं ।
अब हाजी ने कहा--ये दोनों पुत्र मेरे वीर्य से उत्पन्न हुए हैं, इसलिए मेरे हैं ।
शात्न के अनुसार बीज का बोनिवाला ही उसका फल भागने का अधिकारी है। १९०
इस प्रकार का विवाद होने पर देवताझों ने दाथ जाइकर प्रणाम करके श्र्माजी से कहा--
भगवन, आप हो तो साक्षात् सृष्टिकर्ता हैं। हम सब श्ापसे उत्पन्न हुए हैं। श्सएव श्राप
प्रसभ होकर श्रप्नि दौर बरुण-रूपी महादेव का एक-एक पुत्र देकर इनका मनेारथ पूण कीजिए !
यह प्राथना सुनकर ब्रह्मात्ी ने सूर्य के समान नेजस्वी भरु मद्दादेव का तथा भ्रट्टिरा असि को
देकर कवि को स्वयं पुत्र-रूप से ्रहण किया । तब प्रजापति महात्मा झूगु वारुण, श्रीमान् श्रह्लिरा
झाग्नेय झार महायशस्वी कवि न्ञाह्म कहलाये । 'इसके घाद महात्मा शूयु ने 'च्यवन, वज्शीप,
शुचि, आर, शुक्र, विभु घ्ौर सवन ये सात पुत्र अपने समान पुण्यवान् उत्पन्न किये । तुम उन्हीं
शगु के बंश में उत्पन्न हुए हो, इसी से भार्गव कहलाते हो । भगवान् अद्िरा से दद्दस्पति, उतथ्य, २४
पयस्प, शान्ति, घोर, विरूप, संबत झ्रार सुधन्वा तथा भगवान् कवि से कवि, काव्य, धूष्णु,
शुक्राचाय, भ्रगु, विरजा, काशी शरीर उम्र उत्पन्न हुए । फ़िर इन महात्माध्षों से बंश चले।
इसी से भूगु आदि महात्मात्रों के थे सब पुत्र प्रजापति कहलायें श्र इन्हीं के वंश से सम्पूर्ण
जगत परिपूण हो गया । वरुष-मूतिधारी महादेवजी के यज्ञ से महात्मा भ्रूगु, झड्लिस श्रार कवि
उतन्न हुए हैं, इसी से उनके बंशजोां का साधारण नाम वारुण है। किन्तु भ्रूगु के वंश में जिनका
जन्म हुआ है वे भार्गव, झट्िस के वंश में जिनका जन्म हुआ है वे झाड्िरससू त्रौर कवि के बंश
में जिनका जन्म हुआ है वे काव्य कदलाते हैं ।
हैं परणुराम, देवताओं ने ज्झाजा के पास जाकर कहा घान-भगवन् ! आप प्रसन्न होकर
झआज्ा दीजिए कि महपि शगु आदि के बंश में उत्पन्न ये सब महात्मा प्रनापति हैं, वंश-प्रवसेक
का, तपस्या झार नसचये का पालन करके देवताओं के पच्ष में रहें घ्नौर शास्तमूर्ति दोकर श्ापका
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