आधुनिक हिन्दी हास्य - व्यंग्य | Aadhunik Hindi Hasy Vyangy

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Aadhunik Hindi Hasy Vyangy by केशव चन्द्र वर्मा - Keshav Chandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाई लाड १ दो-तीन साधियों-सहित महलपर चढ़ गया । उस समय वह सोनेका बगीचा सोनेका महल और बुलबुलों-सहित एक बार उड़ा । सब कुछ आनन्दसे उड़ता था । बालक शिवदाम्भु भी दूसरे बालकों-सहित उड़ रहा था 1 पर यह आमोद बहुत देर तक सुखदायी न हुआ । बुलबुलोंका खयाल अब बालकके मस्तिष्कसे हटने लगा । उसने सोचा--हैं ! में कहाँ उड़ा जाता हूँ ? माता-पिता कहाँ ? मेरा घर कह्ठूँ ? इस विचारके आते ही सुख-स्वप्न भंग हुआ । बालक कुलबुलाकर उठ बेठा । देखा और कुछ नहीं, अपना ही घर और अपनी ही चारपाई है। मनोराज्य समाप्त हो गया ! आपने माई लाड ! जबसे भारतवर्षमें पघारे हैं, बुलबुलोंका स्वप्न ही देखा है या सचमुच कोई करनेके योग्य काम भी किया है ? खाली अपना खयाल ही पूरा किया है या यहाँकी प्रजाके लिए भी कुछ कर्त्तृव्य पालन किया ? एक बार यह बातें बड़ी धी रतासे मनमे विचारिए । आपकी भारत- में स्थितिकी अवधिके पाँच वर्ष पूरे हो गये । अब यदि आप कुछ दिन रहेंगे तो सुदमें, मूलधघन समाप्त हो चुका । हिसाब कीजिए, नुमायशी कामों - के सिवा कामकी बात आप कौन-सी कर चले हैं और भड़कबाजीके सिवा ड्यूटी और कत्तंव्यकी भर आपका इस देदामें आकर कब ध्यान रहा है ? इस बारके बजटकी वक्‍तृता ही आपके क्तंव्यकी अन्तिम वक्‍तृता थी । जरा उसे पढ़ तो जाइए । फिर उसमें आपकी पाँच सालकी किस अच्छी करतूत- का वणन है ? भाप बारम्बार अपने दो अति तुमतराकसे भरे कामोंका वर्णन करते हैं । एक विक्टोरिया-मिमोरियल हाल और दूसरा दिल्‍ली- दर्बार । पर ज़रा विचारिए तो यह दोनों काम “शो” हुए या “ड्यूटी” ? विक्टोरिया-मिमो रियल हाल चन्द पेट-भरे अमी रोंके एक-दो बार देख आने- की चीज़ होगी । उससे दरिद्रोंका कुछ दुःख घट जावेगा या भारतीय प्रजा- की कुछ दशा उन्नत हो जावेगी, ऐसा तो आप भी न समझते होंगे । भब दरबारकी बात सुनिए कि क्या था । आपके खयालसे वह बहुत




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