एकार्थक कोश | Ekarthak Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
437
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १९)
एकार्थक शब्दों का प्रयोग होता है ।' जैसे--भाव-क्रिया के प्रसंग में 'तच्चिते
सम्मण तललेखे तदज्कवसिए तसिव्वज्कवसाथ तदट्टोबठसे तदप्पियकरणे
सब्भावथाभाविए' मे सभी शब्द भावक्रिया की महत्ता की व्यक्त कर रहे हैं ।
इस प्रकार प्रसंगवश एक ही अथे के वाचक अनेक शब्दों का प्रयोग युनरुष्ति
दोष नहीं है ।
एका्ेक शब्दों से व्युत्पन्न मति छात्र एक प्रसंग के साथ अनेक शब्दों
का ज्ञान कर लेते थे और मद बुद्धि छात्र विभिन्न शब्द पर्यायों से अर्थ समझ
सेते थे । इस प्रकार एकाथंक का कथन दोनों प्रकार के शिव्यों के लिए लाभ-
प्रद होता था ।* और पदार्थ विषयक कोई मूढता नहीं रहती थी । देखें--
“पिंड”, 'उर्यह', 'दुम', “आगासस्थिकाय' आदि ।
छद-रचना में रिक्तता की पृति के लिए भी एकार्थेक शब्दों की. आवश्-
थकता होती है, जिससे उसी अर्थ का वाचक दूसरा शब्द प्रयुक्त किया जा
सके ।* अनुप्रास अलंकार का प्रयोग वही कर सकता है जिसका एका्थेक शब्द-
ज्ञान समृद्ध होता है ।
एकार्थेक कोड क्या ? क्यों ?
एकार्थेक शब्द की व्पृत््तत्ति करते हुए स्थानांग टीका में लिखा है कि
' ३. (क) भ॑ है. (क) भटी प १४ : समानार्था:. प्रकषबत्तिप्रतिपादनाय स्तुतिमुखेल
प्रम्यकृतोक््ता: ।
(सं) अंत टी प १६ : एकायशब्दोपाबानं तु प्राधान्यप्रकषंख्यापनाथंस् ।
(ग) जझाटी प १७ : न 'एकाथंशब्दन्रयोपा दान चात्यम्तशुक्लतात्याप-
नाम ।
रे. अवुद्दामटी प. २७ : एकाथिकाति वा बिशेषणान्पेतानि प्रस्वुतोपयोग
श्रकप्रतिपादनपराशणि ।
३. मी प ११६ : एकार्थशब्दोश्वारण चक्रियमार्थ न बुष्टम ।
४. नंदीटी पृ ५८ : विनेवलमसुखप्रतिपतए मलिशाल * ***
४. अनुहाहाटी प् २० : असम्मोहा्थ पर्यायनासानि ।
६. विभाकोटी पू ६३८: एतदनेकपर्यायास्यान प्रदेसारतरेत सूच्रबन्धातु
लोम्याथम बल नबकन नम
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