शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदहारण | Shikshaprad Shastri Udaharan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
341
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्ग्रे
हुक श्रौर फिर इम तक पहुँचे । परन्तु पसा कदना शरीर ठहरानां
दुम्साइस मात्र होगा । बह कभी इएट नहीं होस्ककता श्ौर न युक्ति
युक्त दी प्रतीत होता है । इस लिये यही कहना सल्लुचित दोगा
कि उस वक्तके वे रीति-रिवाज भी सर्बश् भाषित नहीं थे । वास्तव
में ग्रहस्थों का धर्म दो प्रकारका वर्णन किया गया हैं, एक लौकिक
झोर दूसरा पारलौकिक । लौकिक धर्म लोकांश्रय श्र पार-
लौकिक झागमाश्रय होता है# | विवाहकर्म गृहस्थां के लिये
एक लौकिक धर्म है और इसलिये वह लोकाश्ित है-लौकिक
ज़नौकी देशकालानुसार जो प्रवृत्ति होती है उसके अधीन है--
लौकिक जनों की प्रवृत्ति हमेशा एक रूपमें नहीं रहा करती। वह
देंशकालकी श्रावश्यकताईां के झनुसार कभी पश्चायतियों के
निणुय द्वारा और कभी प्रगतिशी ल हयक्ति यौके उदाहररणा को लेकर,
बराबर बदला करती हे और इसलिये वह पूर्णुरूपमें प्रायः कुछ
समयके लिये ट्वी स्थिर रहा करती हे । यही चजह है कि मिन्न
भिन्न देशो, समयों और ज़ातियोंक विवाहविधानोंमें बहुत बड़ा
झन्तर पाया जाता है | छक समय था ज़ब इसो भारतभमि पर
कट्टा हि धर्मा गहस्थानां लॉफिक: पारलोकिक:।
लोॉकाश्रयो भवदाय्यः परः स्यादागमाश्रयः।॥।--सोमदेव»)
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