अज्ञात जीवन | Aghyat Jeevan

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Aghyat Jeevan  by अजित प्रसाद - Ajit Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गे नधाबाद छावनी ] हि दगड़ की थी | उन दिनों लोगों में श्रपराध करने की वृत्ति अहुत कस थी । कूठ बोलना, सूठे काराज्ञ अनाना, जाल-रुरेज, धोखा, बदनियंती लोग आमते दी न थे । झ्गरेजी कचहरियाँ छोर वकालत का पेशा बन जासे से इस प्रकार के झपराधों में दद्धि हो गई है; यह मेरा निजी अनुभव है । १९२६-३० में मैं बीकानेर हाईकोर्ट का जज था । २५००० वर्गमील के बीकानेर राज्य में केबल एक दाईकोर्ट ही को सेशन्स जज के श्रधिकार प्रास थे । राज्य भर में केवल २०० क्दी थे। सेशन्स जजी का काम मेरे सुपुर्द था | श्रौर फौजदारी श्रेपील भी मैं झ्ौर जजों के साथ सुनकर फैसला करता था । मह्दीनों तक सेशन्स कोर्ट का एक मी मुकदमा नहीं हुश्रा । गवाहों 'को भकूठ बोलना श्ाता ह्ीनथा। श्रगर झूठ बोलते भी थे तो घबरा जाते थे श्रौर उनका कूठ सहज ही में खुल जाता था । श्रघिकतर श्रपराध ऊँट की चोरी था श्रौरत के बलात्कार भगा ले जाने के होते थे । पता लग जाने पर श्पराधी को रुपया देकर ऊँट या श्रौरत को वापस ले लेते थे । वुलिस में रपट कम की जाती थी । खोज लगाने वाले लोगों की सहायता से लोग खुद दी श्रपने माल का पता लगा लेते थे । फाँसी की सज्ञा का होना बीकानेर, जयपुर, उदयपुर श्रादि रियासतों में किसी ने न देखा न सुना । अनारसीदास जी, मेरे ब्रा्रा मैजिस्ट्रेट के सरिश्तेदार के श्रतिरिक्त, बाज़ार चोघरी, छातनी कोतवाल श्र कमसरियेट गुमाश्ता का काम भी करते थे । उनके दाथ के लिखे हुये फारसी भाषा में गवाहों के बयान, श्रमियुक्त का. स्पष्टीकरण, मुक़दमें का फैसला श्रादि मैंने ख़ुद पुराने कागजों मे देखे हैं । वह क्रार्ाज दिल्ली में एक लकड़ी के बक्स में रखे थे । श्रब उनका पता नहीं है । बनारसी दासजी चौधरी कहलाते थे । वह गवाहों का बयान शऔर सुक्दमें की सन्न बातें मैजिस्ट्रेट को समझा देते थे श्रौर मैजिस्ंट की श्रनुमति के श्रनुसार फैसला लिख देते थे। मैजिस्ट्रट उस पर दस्तखत कर देता था। संक्षेपतः सारी




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