नय वाद | Nayavad

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विजय मुनि शास्त्री - Vijay Muni Shastri

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श्री फूलचंद्र - Shri Fulchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द । उपक्रम >मारतीय-सस्हति में, वसन्त-समय को मधु माम नहीं गया है 1 वसच््त समय सुम्दर,सुरभित्त श्रौर सरस हाता है। जिस समय प्रति के प्रापण में वसस्त समवत्तरित्त होता है; उस समय सर्वत्र नया जीवन, नयी चेतना शभ्रौर नया जागरण प्रादुशूत हो जाता है । प्रकृति के वणण-वणा में श्रानन्द, हुप श्र चरलास प्रकट होने लगता है । भ्रणु से महान श्रौर महान से भ्रणु समस्त प्रइंतिनजगत्‌ भ्रमितव सौन्दय एच दूभुन माधुयं से भर जाता है । मधु मास, श्रर्थात्‌ वसम्त झानन्द का प्रतीक मानो गया है. । सुरभिन वसन्त का. सुन्दर समय था । जगती-तल पर चारों भ्ोर “हरियागी का प्रसार था। तर और लताएँ पल्‍्लवित, पुष्पित तथा फलित होकर श्रानन्द में भूम रहे थे । अभिनव विसलया के सौदर्यें से, सुमनो के सौरभ से श्रीर फंला के मधुर रस से तरु भ्रौर लताएँ मानो, जन-सेवा करने की सौभाग्य सचित कर रही थी 3




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