नय वाद | Nayavad
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
267
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
विजय मुनि शास्त्री - Vijay Muni Shastri
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श्री फूलचंद्र - Shri Fulchandra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द ।
उपक्रम
>मारतीय-सस्हति में, वसन्त-समय को मधु माम नहीं
गया है 1 वसच््त समय सुम्दर,सुरभित्त श्रौर सरस हाता है।
जिस समय प्रति के प्रापण में वसस्त समवत्तरित्त होता है;
उस समय सर्वत्र नया जीवन, नयी चेतना शभ्रौर नया जागरण
प्रादुशूत हो जाता है । प्रकृति के वणण-वणा में श्रानन्द, हुप
श्र चरलास प्रकट होने लगता है । भ्रणु से महान श्रौर
महान से भ्रणु समस्त प्रइंतिनजगत् भ्रमितव सौन्दय एच
दूभुन माधुयं से भर जाता है । मधु मास, श्रर्थात् वसम्त
झानन्द का प्रतीक मानो गया है. ।
सुरभिन वसन्त का. सुन्दर समय था । जगती-तल पर
चारों भ्ोर “हरियागी का प्रसार था। तर और लताएँ
पल््लवित, पुष्पित तथा फलित होकर श्रानन्द में भूम रहे थे ।
अभिनव विसलया के सौदर्यें से, सुमनो के सौरभ से श्रीर
फंला के मधुर रस से तरु भ्रौर लताएँ मानो, जन-सेवा करने
की सौभाग्य सचित कर रही थी 3
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