पुरुषार्थ | Purusharth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ८.
विचारना, इच्छा इत्यादि शोर सांकल्पिक जे ते किसी क्रिया
के करने का संकटप । यद्यपि हमारे शरीर को झनेक क्रियाएं,
जैसे श्वास प्रश्वास, नाड़ियो में रक्त की गति, हृदय, फुसफुस
अ्रादि की कियाएं, इत्यादि ऐसी हैं जिनका कोई संबंध हमारी
मानसिक तरंगो या वृत्तियों से नहीं है, पर दमारे व्यावद्दारिक
कर्मों में इन तीनों प्रकार की वृत्तियाँ कारणु होती हैं। सब
से पहले हमारे झंतःकरण पर वैकारिक भावों का किसी
कारण से उदय होता है । फिर दम तदजुसार सोचते हैं झर
अपने झभीष्ट की सिद्धि का माग दूँढ़ते दें ोर इच्छा करते
हैं। इसके साथ दो दम उसके करने का संकरप करते हैं, तब
कोई काम करते हैं । हमारे झंतःकरण में सदस्ती भाव नित्य
भ्रति उदय होते रहते हैं; पर काय्ये में परिणुत वे हो होते दैं
जो बलवान होते हैं, श्न्य भूठे फूल को भाँति उत्पन्न दोकर
विलीन हो जाते दें । केवल झत्यंत बलवती इच्छा ही काय्ये
में परिणत होती है ।
कर्म दो प्रकार के होते हैं--झच्छे झोर बुरे या शुभ छोर
अशुभ । प्रत्येक कर्म करने का कुछ उद्देश्य होता है । अब यदि
उस कम से मारा वहद उद्देश्य पूरा हो तो घद्द काम शच्छा
या शुभ है, शोर यदि उससे चदद उद्देश्य पूरा नहीं दोता, तो
वह बुरा या झशुभ है। दम उस वोणा को शच्छी वीखा
कहते हैं जिससे मधुर स्तर निकलता है; उस लकड़ी . को
अर्छी लकड़ी कहते हैं जो शच्छी तरदइ जलती है; उस
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