रवीन्द्र - साहित्य भाग - 1 | Ravindra - Sahitya Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो बहन * उपन्यास हू
न
ऐसी ही हालतमें उसने विरोध किया था, छुनेन नहीं 'ढी,
नतीजा यह हुआ कि बुखार आ गया , और दाशांकके इतिहासमे
उसका वर्णन असिट अक्षरोंसे ठिख गया ।
घरमें आरोग्य और आरामके ठिए दार्मिलाकी जितनी
सस्नेह व्यग्रता है, वाहर सम्मान-रक्षाके ठिए सावधानी भी
उतनी ही सतेज है। एक चप्रान्त याद आ गया ।
एक बार वह नैनीताल गया था हवा बदलने। पहले
ही से पूरे सफरके ठिए शुरूसे आखिर तक रेखका डब्बा रिजब
था । किसी जंक्शानसे गाड़ी बदलकर वह भोजनकी खोजमे चढ
दिया । चापंस आकर देखा कि वरदी पहने एक दुर्जनमूर्ति
उन्हें. बेदखल करनेकी फिराकसे लगा हुआ है! स्टेशन-
सार्टरने आकर एक बविश्व-विख्यात जनरढका नास छेकर कहा;
कमरा उन्हींका है; गछतीसे दूसरा नाम लग गया है। दाशांक
आँखें फाड़कर वडी इज्जत दिखाकर दूसरे किसी कमरेमे
जानेका इन्तजाम करने ठगा; इतनेसे शर्मिला गाड़ीसें चढकर
दरवाजा रोकके वोल उठी--“से देखना चाहती हूं कौन हमे
उतारता है ! बुढा लाओ अपने जनरलको ।” दाशांक अब तक
सरकारी पदाधिकारी और उनके उऊपरवालोंके जाति-गोत्रवाों
तकसे काफी बचकर चठनेसे अश्यस्त था। वह घबडाकर
बोछा--“अरे; तुम कर क्या रही हो, और सी तो ड्व्ये
है, जरूरत क्या है. बखेड़ेकी ।” शर्मिलाने उसकी बातपर
ध्यान ही नहीं दिया । उअन्तमें जनरठ साहब रिफ्रंदासेण्ट-
रूमसे खाना खतम करके चुरुट सुँहमे दिये निकले; और
चर
भ
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