समाधि शतक | Samadhi Shatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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कुन्दलता जैन - Kundalata Jain
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ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
झ्रब श्रीसमा घिशतक ग्रन्थ को भाषा वचनिका लिखी जाती है--
श्लोक--घेन।त्मा5बुध्यतात्मैव परत्वेनेव चापरम् ।
अक्षयानंतबोधाय तस्म सिद्धात्मने नमः ॥१॥।
अन्वयाथं--(पेन) जिसके हारा (प्रात्मा) झात्मा (झात्माएव)
श्रात्मा रुप से ही (च) श्रौर (ऑ्रपरम्) झ्रात्मा से भिन्न सब जो कुछ पर
है सो (परत्त्वेन एव) पररूप से ही (झ्बुध्यत) जाना गया है (तस्मे) उस
(भ्रक्षयानंत बोघाग) भ्रविनादी श्ौर श्रस्तरहित ज्ञान वाले (सिद्धात्मने)
सिद्धात्मा को (नमः) नमस्कार हो ।
भावाथ--इस महान श्राध्यात्मिक प्रन्थ का प्रारम्भ करते हुए थी
पूज्यपाद स्वामी ने इस इलोक के द्वारा संगलमयी श्री सिद्धात्मा को इसी
लिए नमस्कार किया है कि श्रपने आत्म-स्वरूप का श्नुभव हो जाए।
क्योंकि परस शुद्ध, सवं-कलंकर हित, निरंजन व स्वाधीन 'सिद्ध ध्रात्मा में
झोर झपने शरोर में तिष्ठी हुए श्रात्सा में यद्यपि व्यक्ति को व प्रदेशों के
श्राकार की श्रपेक्षा से भिननता है तथापि जाति को अ्रपेक्षा से एकता है ।
जितने गुण सिद्ध परमात्मा में हैं उतने सब गुर इस श्रपनी श्ात्मा में
भी निश्चय से ध्र्थात् वास्तत्र मे विद्यमान है । वस्तु स्वरूप का विचार
करने पर सिद्धों में श्रौर प्रपने घट में विराजित श्रात्मा में गुणों को
हृष्टि से कोई धन्तर नहीं है। यदपि व्यवहार हष्टि से श्रात्मा कसें-
कलंक के न होने से सिद्ध या शुद्ध श्रौर कमंकलंक के होने से संसारी या
ध्रशद्ध कहलाती है तथापि निश्चय हष्टि से सिद्ध और संसारी आत्मा के
स्वरुप श्रौर गुणों में समानता है । जेसे निमंल पानी श्रौर मंले पानी में
सेल के न होने तथा होने को झपेक्षा से तो भ्रन्तर है परन्तु स्वभाव को
झपेक्षा दोनों पानी के स्वभाव में समानता है । मेल से मिले रहने पर भी
पानी मेल के स्वभाव रुप नहीं हो जाता । यदि हो जाता होता तो
मेला पानी कभी भी निर्मल नहीं हो सकता था परन्तु बहू निमंस होता
देखा जाता है।
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